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आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड
५१८ लोग अभी अन्धेरे में गोते खा रहे हैं अतः मुझे बतला देना चाहिये कि आजकल जो अयोग्य एवं अपठित साधु प्राधाकर्मी आहार खा कर केवल कल्पित योग करते हैं ऐसे योग न तो किसी शास्त्रों में लिखा है और न पूर्व जमाने में किसी ने किया भी था यदि कोई समझदार मेरे सामने आवे तो मैं सूत्रों के पाठ निकाल कर बतला दूं कि धन्नामुनि ने नौ मास में ग्यारा अंग तथा श्री बहलमुनि ने छः मास में ग्यारह अंगों का अभ्यास किया था इतना ही क्यों बल्कि काली महाकाली जयंति और देवानंदा जैसी हजारों साध्वियों ने एकादशांग सूत्रों को वांचा था जिसको आज के कलयुगिये लोगों ने योगद्वाहन करने की बिलकुल मनाई कर रखी है ऐसे तो अनेक उदाहरण जैन शास्त्रों में भरे पड़े हैं जो समय आने पर मैं तथा मुनिजी बतला देंगे इत्यादि । साथ में मैं यह भी सचित कर देना चाहता हूँ कि निंदक लोगों की बातें सुन कर कोई भी सज्जन वीर वाणी सुनने से वंचित न रहे कारण ऐसा सुअवसर शुभोदय से मिल गया है। ___योगिराजश्री के वचनों को सुन कर लोगों को बड़ा ही आश्चर्य हुआ और निर्णय की ओर लोगों की रुवी बढ़ती गई । और वे इस प्रकार और भी कई बातों का निर्णय कर के सत्य बातों को प्रहन करते रहे।
मुनिश्री के व्याख्यान में इतनी परिषदा जमा होती थी कि इतना विशाल मकान होने पर भी बैठने को स्थान नहीं मिलता था, वहाँ के वृद्ध लोग कहा करते थे कि या तो आत्मारामजी महाराज के व्याख्यान में इतने आदमी आते थे या आपके व्याख्यान में आते हैं।