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________________ आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड ५१२ है, पर फिर भी पन्यासजी का कहना था इसलिये आस्त्रिर दोनों मुनियों के योग करवाने को १०००) रुपये रोकड़ उपाश्रय से और श्रावकों से दिलवा कर उनका योग करवाया। कहा जाता है कि आचार्य विजय कमल सरि की मृत्यु के पश्चात् उनके पास दस हजार की रकम रोकड़ निकली, जिसमें से एक तो धमशाला बनो उसमें कुछ रकम लगाई गई। शेष की क्या. व्यवस्था की इसका अभी तक कुछ पता नहीं मिला है। ___ यशमुनि को आचार्य पदवी के योग करवाने के पन्द्रह सौ रुपये लगे तब कृपाचन्दजी को पदवी के तीन हजार रुपये दीराने पड़े । आचार्य विजय नेमि सूरि ने एक व्यभिचारी साधु मोहन विजय को आचार्य पद दिया जिसके कई दश हजार रुपये लिये बतलाते हैं और यह बात संभव भी हो सकती है कारण कि यदि ऐसा न होता तो एक प्रसिद्ध व्यभिचारी को आचार्य जैसा महान पद क्यों दिया जाता? ___योग और उपधान एक ज्ञान प्राप्ती के लिये शुभ क्रिया थी और शास्त्रों में भी इन क्रियाओं का विधान श्रत ज्ञान की प्राप्ती के लिए ही किया है पर वर्तमान में इन परिग्रह धारियों ने प्रस्तुत किया के नाम पर कल्पित विधान बनाकर परिग्रह का मुख्य साधन समझ रखा है गोड़वाड़ में एक हेतविजय नामक पन्यास था उस ने गोड़वाड़ की साध्वियों से बड़ी दीक्षा के योगों के बायने से कई तीस हजार रूपये एकत्र कर लिये थे पर वे स्वयं पुष्करणा ब्राह्मण होने के कारण उनकी विशेष रकम तो उनके प्रहस्थ भाई पुष्करणे ब्राह्मण ही खा गये । शेष बचित रकम घाणेराव के श्रावकों में जमा थी वे लोग हजम कर गये । इस प्रकार कई पन्यासों एवं
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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