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________________ यतियों की काली करतूतें इस बात को निश्चयात्मिक रूप से तो ज्ञानी ही कह सकते हैं, किन्तु सुरत में यह बात सर्वत्र सत्य मानी जा सकती थी, जिस के कि दो तीन कारण हम ऊपर लिख आये हैं । ५११ यति लोगों में कई लोग ऐसे गंदे मंत्र, जादू टोना करने वाले होते भी हैं, शायद या तो इधर पन्यासजी की आयुषको अवधि समाप्त हो गई हो, और उधर इनके परस्पर किसी पूर्व भव के सम्बन्ध से इस प्रकार का निमित्त कारण बन गया हो, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं कि इस प्रकार का मामला बन जावे । फिर, निश्चय तो ज्ञानी ही जान सकते हैं, हमने तो जैसी उस समय उपस्थित रह कर इस घटना को देखी वैसी ही लिखी है । ८० योगोद्वाहन का गजब मूल्य पन्यासजी महाराज अंत समय योगीराज एवं मुनिश्री को कह गये थे कि क्षांतिमुनि तथा जयमुनि को भगवती के योग्य करवाने की मेरे दिल में थी । अब मेरा तो यह अंत समय ही है, पर तुम को मैं कहे जाता हूँ कि किसी भी आचार्य के पास तुम इन दोनों साधुओं को भगवती के योग्य करवा देना | आपके स्वर्गवास के पश्चात सूरत में नेमुभाई की बाड़ी में आचार्य विज य कमलसूरि तथा पंडित लाभविजय वग़ैरह आये थे; मुनिश्री उनसे मिले और योग की बात की तो वे मुँह फाड़े ही बैठे हुए थे । उन्होंने पुस्तक, पात्र, उपाश्रय के बहाने २०००) का महनाना बतलाया और कहा कि इतनी रक़म ( रुपये ) हो तो मैं योग करवा सकता हूँ। मुनिश्री ने कहा कि आप गजब करते ह यह तो एक दुकनदारी ही हो गई है, धर्म और उपकार कहाँ रहा
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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