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________________ ७८-दुर्घटना के साथ पन्यासजी का स्वर्गवास सुरल गोपीपुरा के श्रावकों ने श्रीमान मोहनलालजी महाराज के उपदेश से धर्म कार्य साधन निमित्त एक उपाश्रय बनाया, वह तीन मंजिल वाला मकान था; उसमें प्राय: श्रीमोहनलालजी महाराज के साधु ही ठहरा करते थे । जब श्रीमोहनलालजी महाराज के साधु देविंद्रमुनि, न्याय मुनि पद्ममुनि श्रादि कई साधु वहां ठहरे हुए थे, उस समय कृपाचन्द्र सूरि बंबई से विहारकर बारडोली आये और उनका इरादा सुरत आने का था; लेकिन यह विचार करते थे कि सुरत जावेंगे तो ठहरेंगे कहाँ ? अतः श्रीमोहनलालजी महाराज के उपाश्रय पर धावा बोलने को एक मग्नसागर नामक साधु को सुरत भेजा, और उसने श्रीमोहनलालजी के उपाश्रय आकर साधुओं को कहा कि आपकी आज्ञा हो तो मैं नीचे के भाग में ठहर जाऊँ, जो कि बिलकुल खाली पड़ा है, मुझे केवल २, ३ दिन ठहर कर ही विहार करना है। पहिले तो साधुओं ने इन्कार कर दिया, किन्तु उसके लाचारी करने पर दया आगई, तथा उसको ठहरने के लिए नीचे का भाग दे दिया। यह समाचार कृपाचन्द्रसूरि को मिला, उन्होंने लिख दिया कि हम विहार कर शीघ्र ही आते हैं, तुम उपाश्रय को छोड़ना मत । बस, कृपाचन्द्र जी भी आकर उसी उपाश्रय में मनाई करते हुए भी ठहर गये । साधुओं ने बहुत कहा कि हमारी आज्ञा नहों है, किन्तु जिसको जबरदस्ती कब्जा करना,उनको आज्ञा की क्या परवाह है ? कृपाचन्द्रजी के साधुओं ने उपाश्रय के नीचे के भाग
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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