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नगर प्रवेश का महोत्सव
बादशाहो जमाने के जामा और सुरती पगड़ियों से सुसजित हुए सेठियेलोग मदोन्मत्त हस्ती की चाल चलते थे, और
आसपास की जनता से वे तारों के परिवार से चन्द्र की भांति शो भायमान थे,बहिनों की पोशाक भी उसी भांति की थी क्योंकि 'वि लायत में पेरिस' और 'भारत में सूरत ।'
सम्मेला हरिपुरा, छापरियासेरी, नवापुरा होता हुआ बड़ा चोटा में आया और श्रावकों ने पन्यासजी से अर्ज की कि योगी. राजश्री को यहां ठहरने की आज्ञा फरमा; किंतु गोपीपुरा वालों की इच्छा थी कि अभी तो सब मुनि साथ ही में गोपीपुरा पधारें, बाद वहां से योगीराज बड़े चोटे आ जावेंगे। पर इसमें बढ़ाचोटा वालों का उत्साह भंग होता देख पन्यासजी महाराज ने योगीराज श्री एवं मुनिश्री को आज्ञा देदी । वे बड़ेचोटा के उपाश्रय जहां स्वामी आत्मारामजी महाराज विराजमान हुए थे, वहीं पधार गये, देशना के अन्त में श्रीफलों को प्रभावना हुई। ___ पन्यासजी महाराज अपने शिष्य मंडल के साथ गोपीपुरा प. धारे, उस समय का ठाठ देख लोगों ने कह दिया कि ऐसा सम्मेला सुरत में पहिले शायद हुआ हो ? सम्मेले का दृश्य देखने को जैन तो क्या पर हजारों की संख्या में जैनेत्तर जनता एकत्र होगई थी, जिसकी गणना करना मुश्किल ही नहीं पर असंभव था । जब व्या ख्यान पीठ पर पन्यासजी महाराज पधारे तो एक इन्द्र की सभा की भांति मकान शोभित दीखने लगा । देशना के अन्त में उस रोज इतनी प्रभावनाएं हुई कि कई लोगों के पास तो लेने को बढ़ा वस्त्र भी नहीं था, तथा स्त्रियें अपनो साड़ियों में प्रभावना लेकर उसके वजन से मुश्किल से मकान पर पहुंची।