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________________ ५०७ दुर्घटना से पन्य० मृत्यु पर अधिकार किया सो तो किया ही, पर थोड़े दिनों के बाद ती सरे मंजिल के दरवाजा के ताला तोड़ कर उस पर भी अधिकार कर लिया। जब श्रीहर्षमुनिजी के पधारने की खबर हुई तब श्रावकों ने जाकर कृपाचन्द्र जी को बहुत कहा, परन्तु उन्होंने किसी की भी न सुन कर अपना अड्डा वहीं जमाये रखा। ___जब प० श्रीहर्षमुनिजी अच्छे ठाठ से आये, और पाटे पर बैठ कर देशना दी बाद में उनका मिजाज ( हालत ) खराब हो गया । दो साधुओं ने शरीर पकड़ कर पाटे से नीचे उतरे तो उनके मुँह से खून बहाना शुरू हो गया, एकदम श्रावक एकत्रित हुए, पन्यास जी ने कहा कि योगीराज व मुनिराज को बड़ाचोटा से जल्दी बु लाओ । बस, आदमी के आते ही हमारे योगीराज व मुनिराज तु रंत गोपोपुरा के उपाश्रय पहुँचे, इधर बहुत से श्रावक एवं डाक्टर भी आगये। डाक्टरों की समझ में नहीं आया कि बीमारी क्या है ? इस हालत में लोगों को कृपाचन्द्रजी पर वहम हुअा कि यह पहिला यति था, कहों इसने ही कुछ कर न दिया हो ? कई श्रावकों ने नीचे जाकर कृपाचन्द्रजी को कहा कि पन्यासजी बेहोश हो गये हैं, आप चल कर देखो कि क्या हुआ है ? कृपा चन्द्रजो ने अपने हृदय को इतना कठोर बना लिया कि उन्होंने ऊपर चलने से बिल्कुल इन्कार कर दिया, अतः लोगों का विश्वास और भी दृढ़ हो गया कि इस यति ने ही कुछ दिया होगा। पन्यासजी की हालत देख कर हरेक को त्रास आती थी, यो गोराज व मुनिश्री ने पन्यासजी को सूत्रों की स्वाद्याय खूब सुनाई आलोचना करवाई और वह रात्रि तो ज्यों त्यों करके निकाली। किन्तु अभी तक किंचित मात्र भी आराम नहीं हुआ, इतना ही
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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