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आदर्श-ज्ञान- द्वितीय खण्ड
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विचारते हुए जाना कि यदि मैं स्त्री के मोहवश संसार में रह गया होता तो आज तो वह मुझे छाड़कर चली ही जाती । वीतराग का कथन सत्य है कि इस संसार में कोई किसी का नहीं है, अतः आत्म कल्याण करना ही अपना है अर्थात् आपके वैराग्य में और भी वृद्धि हो गई।
आपके साथ भंडारीजी चन्दनचंदजी थे, जोधपुर में आपके सबसे बड़े पुत्र चंचलचंदजी का देहान्त हो गया जिसके समाचार मुनिश्री को पदमचंदजी के पत्र द्वारा मिले । मुनिश्री ने भँडारीजी को उपदेश दिया कि हम को तो जघड़िया जाना है, आपके लिये सिद्धाचल नजदीक है, इधर ओलियां आगई हैं, आप सिद्धाचल जाकर ओलियां का आराधन करो । भंडारीजी ने कहा कि पहिले पत्र में चंचलचंद की बीमारी के समाचार थे, उसके पश्चात् पत्र नहीं आया है, मैं पत्र को राह देख रहा हूँ। मुनिश्री ने 'सँसार असार है और सर्वजीव कर्माधीन है' इस विषय का ऐसा उपदेश दिया कि भंड़ारी जी उसी दिन रवाना हो कर सिद्धाचलजी चले गये, बाद उनको शत्रुजंय में समाचार मिले, उस समय मुनिश्री का बड़ा भारी उपकार माना कि आर्तध्यान के बदले तीर्थ पर ओलियां करने का मुझे समय मिला | भँडारीजी एक आत्म कल्याणी पुरुष थे ।
मुनिश्री अहमदाबाद से विहार करने की तैयारी में थे इतने में मारवाड़ की ओर से पन्यासजी हर्षमुनिजी पधार गये, आपको सूरत जाना था; मुनिश्री को कहा कि तुमको जघड़िये जाना है तो चलो हमारे साथ में, हम भी जघड़िया होकर ही सूरत जावेंगे । पन्यासजी का मुनिश्री पर बड़ा ही धर्म प्रेम था, मुनिश्रा ने पन्यासजी के साथ ही अहमदाबाद से विहार कर दिया ।