SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 581
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श - ज्ञान-द्वितीय खण्ड टीका ने नथी मानता शेष सर्व माने छे । पन्यासजी ——–त्यारे ढूँढिया भगवान ना चौरतो खराज न ? - . मुनिश्री - एटला माटे तो अमे ढूंढिकपण नो त्याग करीय छए । पन्यासजी-तमे सारूं कीघो, पण बधा ढूँढ़ियां एम भरणेछे ? मुनिश्री - ना, १०० साधुओं में केवल २ साधु थोकड़ा जाणेछे । पन्यासजी - तमारे ज्ञानाभ्यास सारो छे ? ४९२ पन्यासजी ने मुनिश्री की परीक्षा के लिये कई प्रश्न पूछे जिनके उत्तर आपने बिना किसी विलम्ब के दे दिये । तथा बाद में पुच्छयो के शु तमे गमा पण कण्ठस्थ किधा छे ? मुनिश्री - जी हाँ । पन्यास ०- -गमा ना विषय में केटलाक प्रश्न पूछया । मुनिश्री —- तेना पण उत्तर शीघ्रता थी आपी दीधा । --- पन्यास० - आप यहाँ केटला दहाड़ा रोकाशी ? मुनिश्री - हाल १५ दिवस ठहरवाना भाव छे । पन्यास ० — ठीक छे, तमे हमेशा दोपहरना यहाँ आव्या करो | मुनिश्री - श्रवानो तो समय मिलवा थी श्रावाय, आज तो केवल आप थी मिलवा माटेज आव्यो छु । पन्यासजी - खैर समय मिले तो जरूर श्रावजो । मुनिश्री - जी साहिब | मुनिश्री ने पन्यासजी को कई प्रश्न पुच्छे पर उस समय पन्यासजी उन प्रश्नों के उतर नहीं दे सकें और कहा कि हूँ आ प्रश्नों ने माटे विचार करीश तमे काले भावजो । एक दिन एक पोल के मंदिर में पूजा थी, टेलिया ( खबर देने वाला) फिर गया था, कितने ही मारवाड़ी भावकों ए
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy