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________________ ४९३ उपकेशगच्छ की प्राचीनता भंडारीजी के साथ आपश्री भी पूजा में पधारे कितने ही साधु वहां पहले से पूजा में बैठे हुए थे उनके पीछे जाकर आप भी बैठ गये; बाद ज्यों २ साधु आते गये त्यों २ पीछे बैठते गये। करीब ७५ साधु पूजा में आ गये जिनमें कई गाने वाले भी थे; जब साधुओं का इतना जमघट था तो फिर श्रावकों का तो कहना ही क्या था। बीच में मुनिश्री को बैठा हुआ देख कई साधु कहने लगे, 'तमे किया गच्छना छो। मुनि-अमे उपकेश गच्छ ना छए । साधु-उपकेश एटले ? मुनि-एक प्राचीन थी प्राचीन जेष्ट गच्छ एटले उपकेशगच्छ । साधु-ये केवो गच्छ अमे तो नाम शुधी नथी संभल्यो । मुनि-हमणाँ पूजा भणाय छे, पूजा समाप्त थइजा श्रेटले तमने समझावीश के उपकेश गच्छ शुछे। पूजा समाप्त होने के पश्चात् बहुत से साधु चारों ओर खड़े होकर मुनिश्री को पछनेलगे कि 'हीवे समझाओ उपकेशगच्छ कौनो गच्छ छे?" मुनि-तमे जो रोटला लाओ छो ते बदा श्रावक उपकेश गच्छ ना छ। साधु-ते केम ? मुनि-उपकेश गच्छ ना आचार्योंए श्रीमाल, पोरवाल अने ओसवाल जातियां बनाई, तेज जातियां आपनी सेवा करे छ । साधु-शुषाधी जातियों उपकेशगच्छ ना आचार्योए बना वीछे तो अम वताओं के ते प्राचार्यों ना शु नामो हता ? मुनि-आचार्य रत्नप्रभसूरि ने ओसवाल बनाया, आचार्य स्वयंप्रभसूरि ने श्रीमाल, पोरवाल बनाव्या ।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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