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गौरजी शब्दनो सच्चार्थ
मुनि० - हुं व्यक्ति ने माटे नथी पूछतो, पण गौरजी शब्द
नो अर्थ पूछूं छू ।
श्रावक - अमे नथी जाणता, अगर आप जाणो छो तो बताओ श्रमे पण सुशु ं ।
मुनि० - गौरजी यानि गुरु शब्द के अर्थ को ऐसी युक्ति से समझाया कि जिसको सुन कर एक दफे तो सब श्रावक चकित हो गये, बस उसी समय विनती की कि साहेब आप यहां विराजो और हमारे दुःखो के दिनों में कुछ उपदेश देकर हमारे सहायक बनिये । हम आपका बड़ा ही उपकार समझेंगे। बस, फिर तो देर ही क्या थी, उपाश्रय खोल दिया, साथ चल कर आहार पानी की सब योगवाइ करवा दी, भंडारीजी ने भी अपने हाथ से रसोई बना कर भोजन कर लिया ।
दोपहर को बहुत से आवक आये और आग्रहपूर्वक विनती की कि साहिब आप यहां एक मास ठहरो किन्तु इतना श्रवकाश न होने से दो दिन वहां ठहर कर उनको चार टाइम व्याख्यान सुनाया ।
वहां से विहार कर जब मुनि नरवाड़े आये तो भंडारीजी अहमदाबाद चले गये थे । नरवाड़ में अहमदाबाद के कई यात्री आये हुए थे, वहां उन्होंने रसोई बनाई, मुनिश्री को वहां देख . लेने पर भी उन्होंने श्राहार पानी के लिये आमन्त्रण नहीं किया आखिर उन लोगों ने भोजन करने को बैठने की भी तैयारी कर ली, वहां दूसरे स्थान आहार पानी का योग नहीं था । मुनिश्री ने उपवास के पच्चर कान कर लिए, बाद उन श्रावकों के पास जाकर पूछा:
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