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________________ भावश-ज्ञान-द्वितीय खण्ड मुनि०-भाई में कौन छो? श्रावक-अमे श्रावक छिए। मुनि०-क्यां प्रामना छो ? श्रावक-अहमदाबाद ना। मुनि०-वहीं शुकरवा आव्या छो ? श्रावक-यात्रा करवा आव्या छिए । मुनि०-गुंतमे कहो छो ते साचुछे के कल्पित ? श्रावक-कल्पित केम अमे सांचैकहीये छिए। मुनि०--पण तमें श्रावक छो कोना ? श्रावक-भगवान महावीर ना। मुनि०-महावीरना श्रावक एवा निर्दय हृदय वाला नथी होय ? श्रावक-शुअमे निर्दय लिए। मुनि०-बीजुशु। श्रावक-एटले । मुनि-शुतमे जाणता नथी के आ धर्मशाला मां एक साधु आव्या छे तेने माटे तमारी वन्दन तो रही, पण आहार पानी माटे पण एटली, बेदरकारी ? शुं यात्रार्थ आवेला श्रावकोना एवाज कर्तव्य होय छे ? श्रावक-समझी गया कि अपणी भूल जरूर थइ छे तो पण कहवा लाग्या कि साहिब अमे जाण्यो के घोला कपड़ा वाला कोई गोरजी हशे। ____ मुनि०-शु गौरजी ने आहार पानी आपवामों पण एटलो बधो पाप लागतो हशे कि तमे कुतरा ने टुकड़ा नाखो छो अने गौरजी माटे उपेक्षा करो छो । वीरना श्रावकों ना अावाज लक्षण होय छेन ?
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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