SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 569
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पानी जरूरत भाई अमार रोटी करा पछे हाथ आदर्श ज्ञान द्वितीय खण्ड ४८२ मुनि०-आ माणस नथी, पण भक्ति वाला श्रावक छ । बुढी-त्यारे अमारे त्यां, मोकलो । मुनि०-आ तो श्रावक जाणे के तमे जाणो, अमने बचमां पड़वानी जरूरत नथी। बुड्डी-चालो भाई अमारे त्या रोटला खाइलो । भंडारी-ना बहेन हुँ तो हाथे रोटी करी खाउं छु। बुड्डी-शु करवा छता अमारे श्रावक ना घर छे पछे हाथे रोटला श करवा करो छो। ____ बुढ़िया की मुनिश्री पर इतनी श्रद्धा हो गई कि दोपहर में आकर बहुत से प्रश्नोत्तर किये और ठहरने के लिये बहुत कोशिश की, किंतु जाना आवश्यक था, अतः उसकी इच्छा होने पर भी मुनिश्री ठहर नहीं सके। ७४-पाँतिज के श्रावकों के प्रश्नोत्तर ___ दूसरे दिन विहार कर प्रांतेज गये, यह क्षेत्र बुद्धिसागरसूरि का था प्रान्तेज में एक अति सुरम्य उपाश्रय भी था, पर उसमें प्रायः बुद्धिसागरजी व आपके शिष्य ही ठहरते थे, इस समय प्रांतेज में प्लेग का रोग चल रहा था अतः सब लोग ग्राम के बाहर पृथक् पृथक् मकान या मोंपड़ा बांध कर ठहरे हुए थे। जब कि मुनिश्री रास्ते से निकले तो आपके सफेद वस्त्र देख उन एकत्र हुए श्रावकों में से किसी एक ने कहा, 'गौरजी आव्या छ।' मुनिश्री ने सुना तो आप वहां ठहर गये और उन श्रावकों से कहने लगे कि, शुतमे गौरजी शब्दनो अर्थ जाणो छो।' श्रावक-गौरजी नो अर्थ एटले पतित थयेला साधु ।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy