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________________ :४७७ विहार में मरणान्त कष्ट मुनिजीवहां ठहर गये। करीब पहर रात्रि गयी होगी कि भंडारीजी निराश होकर ग्राम के पास आए और मुनिजी को बैठा देखा तब उनके जीव को संतोष हुआ । उस दिन की विपत्तावस्था एक जीव की बाजी लगाने की ही थी फिर भी समय निकल गया। मुनिश्री एवं भंडारीजी दोनों थक गये थे एवं मरणान्त कष्ट से मुक्त हुए थे आपस की बातें की और वह बनाई हुई रसोई आदमियों को खिला दी कारण मुनिश्री के सदृश भंडारीजी के भी रात्रि में अन्न जल के त्याग अर्थात् चौवीहार था। रात्रि समय नाई को बुला कर भंडारीजी ने तेल की मालिश करवाई तथा मुनिश्री की भी व्यावच्च को और क्रिया काण्ड कर वह रात्रि उसी झाड़ के नीचे व्यतीत की । जहां ठहरें वहां एक बाबाजी का मठ था सुबह बाबाजी से जाकर भंडारीजी मिले । बाबाजी इतने सज्जन और मिलनसार थे कि भंडारीजी की बात सुन कर वे अपने मठ में ले गये और इस प्रकार का स्वागत किया कि शायद ही ऐसा कोई खास सम्बन्धी भी कर सकता हो बस दूसरे दिन वहां बाबाजी के मठ में रह गये और पिछले दिन का थकेला वहां उतारा और पास में दिगम्बरों के घर और एक बड़ा मन्दिर था जिसका दर्शन भी किया। ___ तीसरे दिन विहार कर ईडर आये, फिर तो था ही क्या ? यहां सब प्रकार से श्रानन्द था एवं श्रावकों के बहुत से घर थे, उस दिन तो वहीं ठहरे, दूसरे दिन किल्ले के मन्दिर के दर्शन करने को गये । मन्दिर बड़ा ही विशाल था, आसपास में पहाड़ के अन्दर बहुत सी गुफायें थीं, जिसको देख मुनिश्री का तो वहीं ठहरने का विचार हो गया और कहा कि ध्यान करने के लिए तो
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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