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भादर्श ज्ञान द्वितीय खण्ड
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यही स्थान सुरम्य है, किन्तु एक तो गुरु महाराज से मिलना था, दूसरे सिद्ध गिरी की यात्रा करनी थी; ३ दिन ठहर कर आपने बिहार कर दिया। ७३ अामनगर में एक बुट्ठी श्राविका !
आप ईडर से बिहार कर क्रमशः आमनगर पधारे, भँडारीजी आपके साथ ही थे । श्रावक की आज्ञा से आप एक धर्मशाला में ठहर गये, थोड़ी देर के बाद एक बुढ़िया आई और उसने कहाः
बुढी०-तमें कौन छो ? भँडारीo-आ एक साधु छ। बुढी०-साधु होय तो कापड़ पीला केम नथी ? भँडारी–पीला कापड़ आप नथी राखता । बुढी०-त्यारे साधु शा ना ? मुनि० -बहिन अमारे पास रंग नथी । बुदि०-लो हूँ लावी आपु? मुनि-शुं तमारे पास रंग छे ?
बुढि०-अरे अमारे पास न होय तो शुथयो बजार में बेचातो तो मले छे न ?
मुनि०-वेचातो रंग अमारे खपतो नथी। बुढ़ि-त्यारे शुरंग घर में बनतो हशे ?
मुनि०-बेहन घरना रंग थी रंगेला कापड़ वापरे तेश्रोज साधु यहवाय ।
बुढि०-त्यारे शु एटला बधा साधु घरना रंग थी कापड़ रगता हशे ?