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. आदर्श ज्ञान - द्वितीय खण्ड
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जी ने भी उस पानी को पिया, थोड़ा आदमी को भी पिलाया; इस हालत में जीव को कुछ तसल्ली हुई, वहां एक घंटे ठहरे । मुनिश्री सुबह के भूखे प्यासे थे भंडारीजी ने कहा कि अभी दो कोस ग्राम दूर है जाने में दो घंटा लग जायगा, वहां जाकर रसोई बनानी हैं हिम्मत कर चलिये । बस वहां से सब वाने हुए पर मुनिजी के पैर फूट २ कर रक्त बह रहा था । अतः आपने कहा भंडारीजी आप और आदमी आगे चलिये मैं धीरे धीरे जाऊंगा । यही कारण था कि भंडारीजी और श्रादमी श्रागे चले और पिच्छे मुनिजी धीरे २ पहाड़ी रास्ते से आ रहे थे पर दुर्देव के कोप से पीछे मुनिश्री रास्ता भूल कर पहाड़ में भटकने लगे उस निर्जन पहाड़ में न मिला कोई भी और न मिला ग्राम का रास्ता, भटक २ कर थक गये और इधर दिन भी बहुत
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कम रह गया ।
भंडारीजी ग्राम के पास गये एक झाड़ सी नदी में पानी चल रहा था वहां डेरा डाल थोड़ा रहने पर भी मुनिजी न आये वहां एक घुड़सवार आया उसको एक रुपया देकर मुनिजी को शोधने के लिये भेजा, पर वह गया रास्ते २ मुनिजी भटक रहे थे पहाड़ में अतः सवार वापिस आकर कहा कि यहां कोस भर भूमि में कोई आदमी को सूरत ही नहीं दिखती है इसको सुनकर भंडारीजी के होश उड़ गये, आदमी को वहां बैठा कर आप खुद तथा घुड़सवार फिर दुबारा मुनिजी की शोध में गये । इधर देखा जाय तो कुछ घंटा भर रात्रि गई होगी कि मुनिजी एकले ग्राम के पास आ निकले । श्रादमी बैठा था पूछने पर मालूम हुआ कि भंडारीजी आपके सामने गये हैं ।
के पास ही छोटी
रसोई बनाई दिन