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________________ ४७५ विकटावस्था की सीमा फिर भी पहाड़ का रास्ता, न मिले मनुष्य और न पाया पानी या छाया। जैसा हम कथानीक शास्त्रों में किसी महापुरुष के दुःख याने विकट अवस्था का व्याख्यान सुनते हैं और सुनने पर करुणा आजाती है, ठीक वही हालत मुनिश्री और भंडारीजी साहब की हुई थी । मुनिजी का पहिला मरणांत कष्ट दरा के पहाड़ का था, दूसरा आज का है, जब उस पहाड़ पर एक कोस गये तो दोनों के जीने की आशा छूट गई। फिर भी मजदूर होशियार था, भंडारीजी ने उसको पूछा कि कहीं पानी आता है, उसने, हाँ यह पानी आया, यह आया इस प्रकार प्राशा ही आशा में एक कोस और ले आया, पर अब तो प्राण जीव से अलग होने का समय नजदीक ही आ पहुँचा था, एक झाड़ आया तो भंडारीजी धका खाकर वहीं गिर पड़े और मुनिजी भी अचेत होकर वहां पड़ गये। साथ के आदमी ने उन दोनों की मृत्यु सी दशा देख कर पानी की सोध करने को गया; पहाड़ में खूब भटका पर पानी नहीं मिला, बिचारा भील भी घबरा गया, फिर दूसरी दफे भील ने हिम्मत कर पानी की तलाश की; भाग्यवश नजदीक ही एक खाड़ी में पानी दीख पड़ा और उस पर एक झाड़ की छाया भी थी। आदमी भंडारीजी के पास आया, और कहा की सेठजी पानी नजदीक हो है भंडारीजी सावधान हुए और हिम्मत करके उठे और पानी का घड़ा भर लिये और अपने पास शक्कर थी उसमें से करीब १ सेरशक्कर डाली तथा पचास नींब भी उसमें निचोड़ दिये, जब कुछ देर हो गई तो मुनिश्री को आमन्त्रित किया; दो तृपणो पानी पीने पर आपको थोड़ी बहुत तृप्ति हुई, बाद में भंडा-:
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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