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________________ ४५९ गुरां के तालाब का स्वामिवात्सल्य के लिए एक स्थायी फंड किया जिसमें मुख्य चंदा भी तपागच्छ वालों का ही था पर वह भी खरतरों के हाथ में सौंप दिया तथा उसका भी कोई हिसाब नहीं । इस धर्मांधता के कारण ही वे लोग कमजोर और बेइज्ज़त होते गये; तपागच्छ वाले इतने उदार कि न तो खरतरों को हिसाब पूछते हैं और न इस ओर लक्ष ही दिया और इस हालत में भी आमन्दानी उनको ही देते गये । मन्दिरों का और धर्मशाला का जेवर व रकम वगैरहः सब खरतरों के पास ही रहता है । खरतरगच्छ वालों का चतुर्मासा होता है तब पोवा से खर्च कर देते हैं पर तपागच्छ वालों का चतुमास हो तो वे अपने गच्छ में टीप कर खर्च करें । अन्याय अपनी चर्मसीमा तक पहुँचा हुआ था आखिर पाप का घड़ा फूट ही जाता है । तपागच्छ के साधु साध्वियों विशेष नहीं आते थे तथा खरतर गच्छ को साध्वियाँ हरदम रहने से तपागच्छ के लोग भी प्रायः सब क्रिया या तिथी पर्व वगैरह : खरतरों के ही किया करते थे, जिसमें श्राविकाएँ तो तपागच्छ की होती हुई भी वे सब खरतरगच्छ की ही कहलाती थीं। हाँ, तपोगच्छ में एक दीप चन्दजी पारख, नथमलजी भुरंट वगैरह : थोड़े से लोग ऐसे थे कि वे जरूर तपागच्छ की क्रिया करते थे । इस वर्ष खरतरों के पर्युषण पहिले भाद्रवा में थे मुनिश्री के व्याख्यान एवं तपागच्छ की उदारता से सानंद समाप्त हो गये, पर तपागच्छ के पर्युषण अभी होने वाले थे, इसलिए सबको सम्मति से गुरां के तालाब का बड़ा स्वामिवात्सल्य द्वितीय भाद्रपद शुक्ला १० को रखा गया था । एक दिन श्रीकेसरियानाथजी के मन्दिर में स्नान करने की
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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