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________________ ७०-स्वामि बात्सल्य में मतभेद क्यों हुआ? जोधपुर के मन्दिरमार्गी समुदाय में तपागच्छ के ६०० घर और खरतर गच्छ के १०० के करीब घर हैं । तपागच्छ वाले प्रायः मुत्शही-राजधर्गी होने से मन्दिरों के या धर्मशालाओं के सब हिसाब पोता प्रायः खरतरों के पास ही थे, और पर्युषण वगैरहः की आमन्दानी भी उनके वहां ही जमा होती थी। कई अर्सा तक तो काम ठीक चलता रहा पर कलिकाल की कुटल गति से तपागच्छ की उदारता का परिणाम उल्टा ही आया कि कई वर्षों से न तो वे श्रीसंघ के पुच्छने पर हिसाब बतलाते हैं और न जमां रकम का ही पता है। फिर भी खरतरों की ऐसी नादिरशाही कि आमन्दानी तो जमा कर लें पर तपागच्छ के साधु साध्वी श्रावें तो आदमी वगैरहः के लिए एक पैसा भी नहीं देवें, वे अपनी टीप कर अपना काम चलावें; इतना ही क्यों पर धर्मशाला के नीचे एक धर्मशाला की दुकान है, उसका किराया खरतर ले जाते हैं, किन्तु धर्मशाला में कचरा निकलवाई का आठ आना महिनो मांगें तो नहीं दे । बिंटोरा के मन्दिर की रकम से एक दुकान खरीद की थी जिसका २०) माहवारी किराया आता है उसका भी कुछ हिसाब नहीं, जोधपुर के मन्दिरों की काफी आमन्दानी होने पर भी उसका कुछ हिसाब नहीं । गुरां के तालाब पर एक मन्दिर है, और लोग प्रत्येक मास की १० को वहां जाया करते हैं, और जिसके स्वामिवात्सल्य
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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