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________________ आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड ४६० कोठरी में तपागच्छीय वकील मंडल ने स्नान करते २ कहा कि लो खरतरों का पर्युषण तो अच्छा हो गया है, अब अपना पर्युषण आ रहा है, एक दिन सबको एकत्र हो प्रभावना आदि का इन्त. जाम कर लेना चाहिये इस पर कई वकीलों ने कहा कि क्या प्रबन्ध करना है ? अपने पर्युषण खरतरों से भी अच्छे और जोर शोर के साथ मनाया जायगा, इत्यादि बातें कर रहे थे। उस कोठरी के पीछे के भाग में धर्मशाला थी और वहाँ वल्लभश्री ऋतु आई हुई बैठी थी । इस बात को सुनकर वह ऋतु आई हुई होने पर भी चल कर सेठजी के पास गई और कहने लगी कि तपागच्छ वाले अपनी निंदा करते हैं, अतः गुरां के तालाब का स्वामीवात्सल्य इसी दशमी को कर देना चाहिये । वे मेंम साहब का हुक्म कैसे लोप सकें, क्योंकि सेठजी तो वल्लभश्री के हाथ का कठपुतला बना हुआ था, बस उसने प्रथम भाद्रपद शुक्ला ९ को किसी को पूछे बिना ही स्वामिवात्सल्य का सामान खरीद कर गुरां के तालाब भेज दिया क्योंकि पोते की रकम तो उनके पास ही थी । शुक्ला १० को व्याख्यान में श्रा कर कहा कि आज गुरां के तालाब स्वामिवात्सल्य है, सब सरदार पधारना, साध्वी ज्ञानश्री वल्लभश्री भी व्याख्यान में उपस्थित थीं। ___ बस्तीमलजी गोलिया ने कहा कि गुरां के तालाब का स्वामि वात्सल्य तो दूसरे भाद्रव शुक्ल १० को होना निश्चित हो चुका था। फिर यह स्वामिवत्सल्य किस की ओर का है ? खरतरों ने कहा कि सदा की भांति स्वामिवात्सल्य फंड से किया जाता है; इस पर बहुत सा वाद-विवाद हुआ । अन्त में नैनमलजी वकील ने कहा, कि सामने टूदियों की दुकानें हैं, परस्पर इस तरह बोलना ठीक
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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