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भंडारीजी को उपदेश त्याग कर जैन बन रहे हैं. दूसरी ओर हमारे जैन भाई सत्य धर्म का त्याग कर ढूंढ़िये बनने की तैयारी कर रहे हैं, इत्यादि खूब प्रभावशाली उपदेश दिया। अंत में मुनिश्री ने फरमाया कि यदि किसी को ट्रॅढ़िया धर्म अच्छा भी प्रतीत हुआ हो तो पहिले हमारे से दलील करे और ढढ़ियों को पास में बैठा कर दोनों पक्ष की दलीलें सुन लें, बाद जो सत्य समझ में श्रावे वही धर्म स्वीकार कर ले, वरना हम हमारे आचार्यों के बनाये श्रावकों की रक्षा के लिय लट्ठ लिये फिरते हैं, इत्यादि । भंडारीजी समझ गये कि श्राज मुनिश्री का व्याख्यान हमारे लिये ही हुआ है। ___भंडारीजी-महाराज पर्युषणों के दिनों में ऐसा व्याख्यान क्या हो रहा है ?
मुनि:-भँडारी साहब, यह आपके लिये ही है । भंडारी-क्यों हमने क्या कसूर किया है ? - मुनि०-हमने सुना है कि भंडारीजी की हवेलियाँ वाले हूँ ढ़िया बनने की तैयारी करर हे है।
भंडारी०- केवल सुनने पर ही आपने सत्य मान लिया। मुनि-नहीं, मैंने अनुभव भी किया है ? भँडारी–किप तरह से ?
मुनि-मुझे पाये को करीब दो मास हुए हैं, व्याख्यान हमेशा बंचता है, किंतु आप सरदारों को मैंने कभी व्याख्यान में नहीं देखा तथा आप अपने मकान में दूढ़िये साधुओं का चातुर्मास करवा कर वहाँ व्याख्यान सुनते हो । इससे अनुमान किया जाता है कि संवेगी साधुओं से आपको अरुचि और हँढ़ियों से रुचि