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आदर्श - ज्ञान-द्वितीय खण्ड
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हो गई है। इस बात का मुझे आश्चर्य भी होता है कि भँडारीजी साहिब की हवेली में ढूँढ़िया साधु चातुर्मास करे ।
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भँडारीजी - क्या मकान में चातुर्मास करवाने से कुछ हानि होती है ?
मुनि - हाँ जरूर हानि होती है, मकान में चौमासा तो क्या पर उत्सूत्ररूपक विप्रीत श्रद्धा वालों की संगत करने से एवं मुंह देखने में भी पाप लगता है भला आप ही अपने दिल से विचार करें कि इन लोगों की सँगत करने में आपके दिल कैसे बन गये हैं ? क्या भंडारीजी साहब की मौजूदगी में कोई उत्सूत्रप्ररूपक हवेली में पैर तक रख सकता था । जब आपने अपने मकान में चातुर्मा करवा दिया । आप भले अपने मन को मजबूत रख सकेंगे, पर आपकी संतान एवं महिलाओं पर इसका कितना बुरा असर पड़े - गा इसका भी अपने विचार किया है ?
भंडारीजी - क्या किसी को संगति करने में भी पाप लगता है । मुनि - भंडारीजी आप क्या नहीं जानते हो कि अखिल जैन समाज मूर्त्ति पूजक था पर कुसंगत करने से श्राज वे हजारों लाखों मनुष्य मूर्त्ति के कट्टर दुश्मन बन मुंह बांधने लग गये हैं ।
भंडारी०—महाराज हम ढूँढ़ियों के जाते जरूर हैं पर हमने कभी डोरा डालकर मुंह पर मुँहपत्ती नहीं बांधी है और मूर्ति पर हमारी अटल श्रद्धा है, यदि कोई देवता भो कह दे तो अन्यथा नहीं हो सकती है।
मुनि - तब तो हमको शंका करना ही व्यर्थ है, यदि हमारे व्याख्यान से आपके दिल को ठेस पहुँची हो तो हम क्षमा चाहते हैं । भंडारी० -- नहीं जी महाराज; आप किस बात की क्षमा