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दोपचंदजी की प्रार्थना
नहीं मानी और अपनी प्रवृति को ज्यों की त्यों चलने दी । आस्त्रिर नतीजा वह हुआ जो कि ऐसे काम में होना चाहिये ।
६७-खरतरगच्छ वालों के पर्युषण ___ इस वर्ष भाद्रव मास दो होने से खरतरों के पर्युषण पहिले भाद्रव में तथा तपागच्छ, उपकेशगच्छ, और प्रदेशी ईढ़ियों के पर्युषण दूसरे भाद्रव में थे। खरतरगच्छ के अग्रसर श्रावक और साध्वियों ने श्रा कर मुनिश्री से अर्ज को कि कृपा कर आप हमारे पर्युषण में कल्पसूत्र का व्याख्यान बांच दीरावें, क्योंकि हमारे यहां यह रिवाज है कि साधु मौजूद हो तो साध्वियां व्याख्यान नहीं बांचती हैं, जिसमें हम तो खास आप ही के पास पढ़ी हैं तो आपके विराजते हुए हम व्याख्यान बांच ही कैसे सकें ? मुनिश्री ने अपना पर्युषण न होने के कारण व्याख्यान बांचना उचित तो नहीं समझा किन्तु वात्सल्यता बनी रहने के कारण खरतरों का कहना स्वीकार कर लिया। ___ एक दिन दीपचन्दजी साहिब पारख ने मुनिश्री से विनय की कि हमारी समुदाय में भंडारी हनुतचन्दजी साहिब और आपके भाइयों की तमाम हवेलियों वाले मन्दिरमार्गी और समुदाय में अग्रसर हैं । पूज्य श्रआत्मारामजी महाराज इनको ब्रष्णु हो तों को बचाकर जैन धर्म में स्थिर रखे हैं। तथा ये तपागच्छ में मुख्य हैं । किन्तु अभी इन्हों की हवेलियों में हूँ ढ़ियों का प्रचार बढ़ रहा है। इसका कारण यह है कि स्वरूपचन्दजी साहब के पुत्र गोड़ीचन्दजी बीमार थे, एक दिन उन्होंने रात्रि में श्री केसरियानाथजी की यात्रा बोली थी, कि मेरी बीमारी मिट जावे तो मैं आपके दर्शन कर.........