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आदर्श - ज्ञान-द्वितीय खण्ड
से परिचय क्यों करती है ? इस में विशेष लोग खरतरगच्छ के ही थे और उन्होंने उनके दुश्चरित्र के बुरे फल का होना सोच कर ज्ञानश्री को कह दिया कि वल्लभश्री को आप रोक दो, इस में ही आपको तथा गच्छ की शोभा है, वरना हमको दूसरे मार्ग का अवलंबन करना पड़ेगा । इस पर ज्ञानश्री ने वल्लभश्री को बहुत समझाया पर जवानी के घमंड में मस्तान बनी हुई बिचारी ज्ञानश्री की कब मानने वाली थीं उसने तो एक चेतनश्री नाम की युवा कुंवारी १९ वर्ष की साधी को भी अपने सदृश पतित बना दी । अब तो एक से दो हुई अधिक कहने पर जवाब मिला कि लो तुम्हारा श्रोघा पात्रा, मैं घर मांड संसार में रहूँगी ।
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जब मुनिश्री ने सुना कि साक्षियों का यह हाल है तो व्याख्यान में खूब फटकार लगाई और साधु साध्वियों के आचारव्यवहार और संसारियों से परिचय पर शास्त्रीय प्रमाणों से खूब जोरों से उपदेश दिया, जिससे साध्वियाँ नाराज हो गई थीं। फिर भी वे बाह्य प्रेम बताने के लिए तथा ज्ञानप्राप्ति के लिए व्याख्यान में सदैव आया करती थीं ।
इधर शहर में इस बात की खूब जोरों से चर्चा होने लगी, इस हालत में कई खरतरगच्छ वालों ने वल्लभश्री को बहुत सम माया कि तुम सेठजी की हवेली पर आना जाना छोड़ दो; इस से समुदाय में हो नहीं, किन्तु शहर में भी खराब चर्चा हो रही है कि जिससे हम लोगों को लाचार हो मुंह नीचा करना पड़ता है। किन्तु इश्क़ एक ऐसी बुरी बला होती है कि वल्लभश्री ने एक