________________
४४१
मुनिश्री को सावधानी
पाटे पर बैठ मुख जबानी व्याख्यान दे दिया । बाद में मालूम हुआ कि आज मुनिश्री ने आँखों का ऑपरेशन करवाया है।
जोधपुर में इस समय तपागच्छ की साध्वी धनश्रीजी, कल्याण श्रीजी का भी चातुर्मासा था वे भी साध्वियें ढूंढ़ियों से निकल कर संवेगी हुई थी । वे भी ज्ञानरुची एवं पूर्ण भक्ति के साथ व्याख्यान में आया करती थीं ।
1
साध्वी ज्ञानश्री वल्लभश्री फलौदी की भांति यहां भी दोपहर को सत्रों की वाचना लेना चाहती थीं पर फलोदी के लोग दीसावरी और उनको सूत्र सुनने का रुचि थी एवँ दोपहर को भी सैंकड़ों लोग एकत्र हो जाते थे । अतः वहां दोपहर का सूत्र बच सकता था किंतु यहां की जनता को दोपहर को समय नहीं मिलता था अतः मुनिश्री ने साफ इनकार कर दिया कि व्याख्यान के अतिरिक्त मुझे समय नहीं मिलता, जिससे कि मैं आपको सूत्रों की वाचना दे सकूं । इस पर साध्वियों ने कहा कि हम लोगों ने ज्ञानभ्यास के लिए तो जोधपुर में चातुर्मास ही किया है । यदि हम अकेली आती हैं इसलिए ही आप को इन्कार हो तो एक दो बाईयों को साथ में ले कर आया करेंगे । फिर भी मुनिश्री ने कह दिया कि दोपहर को मुझे समय नहीं मिलता है ।
जोधपुर में एक से ज़ी जो कि एक नास्तिकों की गिनती का आदमी था उसका वल्लभश्री के साथ इतना परिचय हो गया था कि साध्वी के पास रात्रि में दस २ बजे तक धर्मशाला में पड़ा रहा करता था । वल्लभश्री भी उसके मकान पर टाइम ब टाइम जाया करती थी जिससे शहर में इस बात की काफी चर्चा होने लगी कि कुंवारी दीक्षा लेने वाली युवा साध्वी इस नास्तिक
1