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कागद हुंडी पैठ परपैठ अरु, मेमर नामा किया तैयार सीमंधर के चरणकमल में, भेज भारत की करी पुकार।। पासत्या गुलशोर मचाकर, निज अपमान कराते हैं । नवयुवकों में खूब जागृति, जहां तहां पोल खुलाते हैं ।।७७॥
शुक्ल तीर्थ से आये पादरे, बुधिसागर सूरि थे वहां । राजनगर में नेमिसूरिजी, हटीसिंह की वाड़ी जहां ॥ एक दिन वहाँ गये वन्दन को, डाक उसी समय आई थी ।
जैनपत्र में था मेमर नामा, देख न बात समाई थी ।।७८॥ मेझर बन्ध करवाने हेतु, कोशिश बहुतसी कीनी थी । शक्ति भक्ति की कर नीति, प्रेम से धमकी दीनी थी । चाहता था जमाना जिसको, आखिर वह प्रसिद्ध हुआ। क्रान्ति फैलाई नवयुवकों में, सुधार का कुछ काम हुआ ॥७९॥
सोरीसर और पानसर की, यात्रा भोयणी न्यारी धी । म्हेसाना हो तीर्थतारंगा, उपधान की वहाँ त्यारी थी । मोती विजय पंन्यास एक शिष्य,कई साठ विधवा नारी थी।
वहाँ का ढंग देखकर दिल में,दाह शासन की भारी थी॥८॥ दान्ता हो पहाड़ों के बीच में, तीर्थ कुंमारिये दर्श किया । वहाँ से खराड़ी आर्बुदाचल, यात्रा करके लाभ लिया । सिरोही के चौदह मन्दिर, पाली जोधाणे आये थे । आय ओसियाँ वीर भेटिया, देख बोर्डिंग दुःख पाये थे ।।८१ स्थिरता करके वहाँ कि व्यवस्था, सुंदर काम बनाया था। पास गुरु के थी पुस्तके, ज्ञान भंडार स्थपाया था । अति आग्रह से आये लोहावट, पहला अंग सुनाया था । फलोदी नगर में आप पधारे, स्वागत का ठाठ सवाया था ।।८२॥