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________________ आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड ४२६ इस पाठ को देख उदय० विचारने लगे, इतने में सरिजी ने दो तीन बार कह दिया, एटली बार शु जोओ छो उत्तर आपी दो" शायद सूरिजी ने गुजराती श्रावक ही समझ लिया होगा पर यह प्रश्न तो एक विकट समस्या का था । आखिर मुनि उदयविजयजी ने कहा कि श्राशुंबात छे समझ में नयी भावती, आ सूत्रनी टीका तमारे पास छे ? मुनिजी ने कहा, टीका तो मंदिर में है। उदय-अमारे पास प्रश्नव्याकरण टीका वालो छ पण पेटी में पैक करेलुछे, समय मलसे तो खोलीश । त्यारे जाइश। ___ मुनि-ठीक साहिब। समय चार बजे का आ गया था, मुनिजी सूरिजी की आज्ञा ले कर अपने स्थान पर आये किंतु रूपसुंदरजी वहां सरिजी के पास ही ठहर गये, मुनिजी के जाने के बाद सूरिजी और रूपसुंदरजी की बातचीत हुई और रूपसुन्दरजी के कान में सूरिजी ने फूंक मार कर कुछ समझाया होगा कि उनको भावना सूरिजी के पास रहने की हो गई। सूरिजी ने प्रसंगोपात बातें करते हुए फलोदी के श्रावकों को कहा कि कँवलागच्छ तो लगभग १००-१५० वर्षों जिटलो पुराणा छ । ___ जोगराजजी वैद्य इस बात को सुन कर मुनिश्री के पस आये और सूरिजी के वचन मुनिश्री को सुनाया । मुनिश्री ने सोचा कि रात्रि में तो मैं वहां जा नहीं सकूँगा, प्रातः काल सूरिजी शायद विहार कर जायंगे, फिर आप के दिल में कँवलागच्छ अर्वाचीन है, यह शल्य ज्यों का त्यों रह जायगा। मुनीश्री ने जोगराजजी को कहा कि श्राप सूरिजी से कहो
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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