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________________ ४२७ कॅवलागच्छ की प्राचीनता कि आपने कॅवलागच्छ का अर्वाचीन बतलाया है , किंतु मुनिश्री ने कहलाया है कि कँवलागच्छ चौरासी गच्छों में सब से प्राचीन और जेष्ठ गच्छ है इत्यादि । जोगराजजी ने जा कर मुनिको का संदेश सूरिजी को ज्या का त्यों सुना दिया। ___ सुरिजो एकदम चौंक उठे और संघपति को बुलाकर पूछा 'केम काल यहाँ रहवानुं छे के चालवानुं । सँघपति ने कहा, साहिब चालवाD निश्चय करी लीधु छे । इस पर सूरिजीने जोगराजी को कहा, घेवरमुनिजी को कह दो कि तुम अपनी उपाधि ले कर यहाँ आ जाओ, प्रतिक्रमण यहाँ कर के गत्रि में यहो रहो । योगराजजी ने मुनिश्री के पास आकर कह दिया कि सूरिजी ने आपको वहाँ ही बुलाया और रात्रि भर वहीं ठहरने को कहा है। . ____ मुनि-बहुत अच्छी बात है, मुनिजी अपने वस्त्रादि ले कम, सरिजी की सेवा में चले गये, जाते ही सरिजी ने तो गच्छसंबंधी बातें छेड़ दी, अतः प्रतिक्रमण रात्रि को १० बजे किया । गच्छसम्बन्धी बातों में मुनिश्री ने उपकेशगच्छ एवं आचार्यरत्नप्रभसूरि और आपके गुरु स्वयंप्रभसूरि का इतिहास कह सुनाया, उसी समय सरिजी ने अपनी भूल कबूल की और कहा कि मेरा खयाल तो था कि १००-१५० वर्ष पूर्व तपागच्छ से एक कॅवलकलासा नामक शाखा निकली है जिसमें वर्तमान धनारी के श्रीपूज्य हैं अतएव मैंने उस कँवलगच्छ को ही अर्वाचीन कहा था । ___ प्राचार्य रत्नप्रभसूरि के लिये मैं जानता तो था ही, किन्तु जितना तुमने सुनाया उतना मैं नहीं जानता था। तो क्या अब तुम इस गच्छ का उद्धार करोगे ? मुनिः-मेरे जैसों से उद्धार तो क्या हो सकता है, किन्तु
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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