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मुनिश्री के प्रश्नों का उत्तर ।
दोनों ओर गोचरी पानी होने के बाद करीब एक बजे मुनिश्री प्रश्नव्याकरण सूत्र जो टव्वावाली प्रति आपके पास में थी, ले कर सूरिजी महाराज की सेवा में पहुँचे, साथ में फलोदी, लोहावट, तीवरी, जोधपुर के श्रावक भी थे; उधर संघ के भी बहुत से लोग उपस्थित थे। अहमदाबाद से भी कई लोग सूरिजी महाराज के दर्शन एवं जैसलमेर की यात्राथ आये हुए थे, अर्थात अधिक लोगों की उपस्थिति और सरिजी बातों में लगे हुए थे, इस हालत में मुनिश्री ने प्रश्न करना उचित नहीं समझा, फिर भी सरिजी ने मुनिश्री से बड़े ही प्रेम के साथ कहा. सूरिजी-मुनिजी तमारे कांई पूछना हो तो पूछी लो ? - मुनि-साहिब ! अभी श्रावकलोग आये हुए हैं फिर कभी समय मिलने पर पूछ लूंगा । . सूरिजी-ना अमे शुं छै ? तमे लाया छो न सूत्र ? मुनि-अपने पास से सूत्र सूरिजी के हाथ में दिया।
सूरजी-उस सूत्र को लेकर पहले तो आपने देखा बाद उद्यविजयजी को दिया और कहा कि उत्तर आपि दो।
मुनिश्री-उदयविजयजी ने उस सूत्र को ले कर मूलपाठ देखा । जिसका पाठ निम्न लिखित था।
"किचि पुप्फ फन तया पवाल कंद मल तरण कठ्ठ सकराई, अप्पं च बहुं च, अणुं च थुलंगं च ण कप्पती उग्गहे अदिणं गएहउ जे हणि हणि उग्गहं अणुणाविय गेण्हियाब्वं"
"प्रश्नव्याकरण सूत्र तीसरा संवरन्द्रार"