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गुरु पंन्यास और मुनीश्वर, सूरत नगर प्रवेश किया । सम्मेला का ठाठ अजब था, इन्द्र उच्छव भुलाय दिया । बड़े चोटे गुजराज विराजे, गोपीपुरे पन्यास का स्थान । दुर्घटना के साथ पंन्यास का, आकस्मात् हुआ अवसान ॥६५॥
व्याख्यान में श्री सूत्र भगवती, ठाठ हमेशा लगता था । जैनधर्म की महिमा फैली, जिन वाणि रंग वरसता था ।। कई हजार पुस्तकें छपवाई, ज्ञान प्रचार बढ़ाया था ।
सागरानन्द सूरि के साथ में, अभव्य प्रश्न उठाया था ॥६६॥ रूढ़ि चुस्तों ने योग दीक्षा का, हुल्लड़ खूब मचाया था। उत्तर मिला सूत्रों की शाख से, फिर जवाब नहीं आया था । देश नेता दयालजी वगैरह, सरघस खूब निकाला था । जैन मुनि भी गये सभा में, भाषण विदेशी कुदाला था ॥६७।।
यात्रा करनी थी महातीर्थ की, गुरु आज्ञा प्रदान करी । लब्धिमुनि और माणक मुनिजी, साथ हो गये भावधरी ।। क्रमशः आये अंकलेश्वर में, दुर्घटना एक ऐसी बनी ।
ग्राम पास में घर दो सौ, जैन पाटीदार थे धनी ।। ६८ ॥ स्वामि नारायण पन्थ जिसका, उपदेशक एक आया था। जैनधर्मको छोड़ अप्रेश्वर, मंदिरों की चाबियां लाया था।। सुनकर के मुनिराज तीनों ही, वहां जाकर समझाया था। पतितों का उद्धार किया, फिर जैन झंड फहराया था ॥६९॥
आमोद जम्बुसर कावीतीर्थ, नाक बैठ खंभात गये । पब्लिक भाषण हुए आपके, चर्चा में वह विजयी भये ॥ धोलका होकर आये वल्लभी, भावनगर प्रवेश किया । प्रश्नोत्तर व्याख्यान बांच कर,जनता को बहुलाभ दिया ॥७॥