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संघ साथ में गये रणकपुर, यात्रा आनन्द कारी थी । करके लड़ाई अपने प्रभु से, फिर मेवाड़ भूमि भारी थी || साथ भंडारी चन्दनचंदजी, और कई नरनारी थे । भानपुरा में शान्ति महापूजा, ठाठ सभीने नगर घुलेवा नाथ केसरिया, दर्श अपूर्व जन्म सफल हुआ यात्रा से, संघ में आनन्द छाया था । ईडर जाताँ साथ भंडारी, प्राणों की बाजी लगाई थी ||
थे ॥ ५९ ॥
था ॥
GIMARY
भारी
पाया
पर नहीं था कुछ आफत का, कर्मों की जाल जलाई थी ॥ ६० ॥ आम नगर बुढ़िया के प्रश्न, प्रान्तेज में भेद बताये थे । नरवाड़ा में देकर शिक्षा, फिर राजनगर में आये थे ॥ सम्मेलन का ठाठ नगर में, व्याख्यान की धूम मचाई थी । प्रसिद्धि उपकेशगच्छ की, यात्रा की युक्त सवाई थी ॥ ६१ ॥
एक मास तक व्याख्यान यात्रा, आनन्द खूब मनाया था । देखी भक्ति मरूधरों की, गुर्जर भी शीश नमाया था || सीमंधर का था वहाँ मन्दिर, शिल्पकला नवाई थी ।
थे ॥
पाये
भेंट हुई सूरि मुनियों की, प्रायः शिथिलता पाई थी ॥ ६२ ॥ भंडारीजी गये सिद्धाचल, ओलियाँका लाभ उठाये थे । हर्ष मुनिजी पन्यास थे वहाँ, वे मारवाड से आये उनके साथ खेड़ा मारत हो, हंस के दर्शन वटादरा में कमलसूरीश्वर, समागम कर हर्षाये गंभीग से फिर आये पादरे, बड़ौदा में व्याख्यान दिये । रास्ता में भेंट हुई मुनियों की, सब मन्दिरों के दर्श किये ॥ चलकर ये तीर्थ जघड़िया, यात्रा कर आनन्द पाया था । गुरुराज वहाँ पहले पधारे, महा-हा ठाठ सवाया था ||६४ ||
थे ।
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थे || ६३ ॥