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-- ३२ - दोनों चलकर आये फलोदी, दोनों के व्याख्यान हुए । दोनों और के श्रावक मिलकर, निर्णय को तैयार हुए ।। चलकर के वे गये दोनों में, मुनि श्री ने स्वीकार किया । साफ इन्कार किया पूज्य ने, विजय डंका बजया दिया ॥५३॥
पूज्य पधारे फिर लोहावट, वहाँ भी डंका बजाया था ।
ओसियों में श्री नेमिसूरिको, संघ के साथ बधाया था ।। कवलागच्छ की प्राचीनता, साबित कर बतलाई थी ।
रूपसुन्दर को सूरि ले गये, कर गये ऐसी भलाई थी ॥५४॥ फलोदी में जो संस्था स्थपाई, ब्राँच शाखा यहाँ खुलाई थी । विद्यालय का करके निरीक्षण, लाभ की जोड़ मिलाई थी । वहाँ से पधारे प्राम मथाणिये, मनमोहनचंद भंडारी था । था पब्लिक व्याख्यान श्रापका, उपकार वहाँ का भारी था ।।५५॥
तीवरी होकर आये मंडोवर, वहाँ का किला दिखायाथा। . भग्न मन्दिर पुराना वहाँ पर, जोधाणा संघ आया था । अति आग्रह से करी विनती, चतुर्मास वहाँ ठाया था ।
व्याख्यान में श्री सूत्र भगवती, सुनके संघ हरखाया था॥५६॥ फूलचन्दजी थे साधु प्रदेशी, मूर्तिवाद उठाया था । स्वरूपचन्दजी साहब भंडारी, निर्णय करना चाहायाथा ।। शास्त्रार्थ का करके निश्चय, इतला सबको पहुँचाई थी । फूलचन्दजी नहीं आये सभा में, विजय भेरी बजवाई थी ॥५॥
जब पाली में प्लेग चलता था, दुनियाँ सब घबराई थी । शान्ति स्नात्र करवाई पूजा, शान्ति नगर में छाई थी। वहाँ से क्रमशः आये सादड़ी, व्याख्यान की धूम मचाई थी । वादि नत मस्तक हो छूटे, वहां विजय अपूर्व पाई थी ॥५८॥