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________________ - ३१ - गुमान मुनिजी चातुर. मुनिजी, मांगीलालजी आये थे। पन्यान थे श्री हर्षमुनिजी, तीर्थ में दर्शन पाये थे। बोर्डिग की वृद्धि दिन दिन, परिश्रम आपका भारी था । मेला तक तो वहां ही बिराजे, उद्योग ज्ञान प्रचारी था ॥४७॥ प्रतिमा छत्तीसी पहलीरचना, गयवर विलास था विस्तार । सिद्ध प्रतिमा मुक्तावली पूजा,स्तवन संग्रह भक्ति का सार।। चली थी चर्चा खंडनमंडन की, सत्य धर्म का किया प्रचार । अनेकों को स्थिर किये धर्म में, कई पतितों का किया उद्धार ।।४८।। अति आग्रह फलोदी संघ का, वहाँ पधारे करके विहार । रूपचन्द को देकर दीक्षा, शिष्य बनाया करके उद्धार ॥ रत्नप्रभसूरि का स्मरण, करना था एक अमर काम । रत्नप्रभाकर ज्ञानपुष्पमाला, संस्था का रखा था नाम ॥४९॥ माणकलाल कोचर ने उठाया, पाठशाला का जबर काम । जैन लायब्रेरी थी खुलवाई, नवयुवकों ने रखा नाम ।। रत्नज्ञान पुस्तकालय फिर, सेवा मण्डल सुधारा काज । और कई सुधार हुये थे, आभार मान रहा आज समाज ॥५०॥ धूलचन्द को दीक्षा देकर, धर्मसुन्दर रक्खा था नाम । व्याख्यान में श्रीसूत्र भगवती, वाच देना था आपना काम ।। अनेक साध्वियों या कई श्रावक, कर रहे थे कंठस्थ ज्ञान । जैसलमेर की करी यात्रा, शास्त्रार्थ का मंडा मंडन ॥५१॥ खीचंद में एक दीक्षा देने का, उच्छव ठाठ मचाया था । व्याख्यान का था रस अपूर्व, पतितों को जैन बनाया था। पूज्य पधारे उसी स्थान में,जिन प्रतिमा का दिया व्याख्यान । . सूत्रों में है जैसे मूर्ति, नहीं करते हैं हम अपमान ॥५२॥
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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