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आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड
४०८ जी ने या हम लोगों ने मंदिर जाना छोड़ दिया है, बाकी मंदिर में जाकर मूर्ति का दर्शन करने में कोई दोष नहीं है। ___ मुनिः- एक धर्मस्थान में बहुत से श्रावक दया पालते हैं, उनके लिए मिठाई, भुजिये, साग, सेवें, फुलके, पुडियां, दही का रायता वगैरह नाना प्रकार के भोजन आते हैं, कई पुरसगारी करते हैं तो कहीं मिष्टान्न के टुकड़े गिर भी जाते हैं, वहां कीड़िये तथा मक्खियें भी आ जाती है, उस समय एक चौविहार उपवास वाला श्रावक आकर उन दयावालों का आडम्बर देख दया से घृणा कर स्थानक में आना ही छोड़ दे तो क्या आप उस को ठीक समझते हो?
सूरज:- नहीं।
मुनि- तो फिर मंदिर का आडम्बर देव मंदिर ही छोड़ देना क्या समझदारों का काम है ?
सूरज- आप का कहना ठीक है किंतु अब तो परम्परा हो गई है न ?
मुनि- भला पूज्यजी महाराज स्वतः टूटा हुआ फूल तो भगवान की मूर्ति पर चढ़ाना स्वीकार करते हैं न ?
सूरज-हां खास पूज्य महाराज ने मुझे कहा था ।
मुनि- उस फूल में तो फिर भी सचेत पना रह ही जाता है पर मैं तो आप से यह कहता हूँ कि फूलों के बदले लौंग ही चढ़ाया करें, इस में तो कोई हर्ज है ही नहीं क्योंकि लौंग अचित होते हैं जिसको साधु भी ले सकते हैं।
सूरजः- हां इसमें तो कोई हर्ज नहीं है।