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________________ ४०७ मुनिश्री और सूरजमलजी का भले ही झगड़ा हो और इतना झगड़ा नहीं, होता तो फिर मत अलग ही क्यों कहलाया जाता । दोपहर में लोहावट वाले सूरजमलजी श्रोस्तवाल नो मुख्य तौर पर पूज्यजी महाराज के पूर्ण भक्त थे, मुनिश्री के पास आये, तथा वन्दन कर के प्रश्न किया । सूरज – महाराज यह मंदिर मूर्ति का क्या झगड़ा है, श्राप भी मूर्ति मानते हो और हमारे पूज्यजी महाराज भी कहते हैं कि सूत्रों में मूर्ति है और हम मूर्त्ति मानते हैं । मुनि०- यदि पूज्यजी महाराज मूर्ति को मानते हैं तो फिर झगड़ा ही किस बात का है ? सूरज ० - पूज्य महाराज ने श्राज ही व्याख्यान में फरमाया है । मुनि ०. - यह कहने मात्र का है । सूरज़० – क्यों ? -- ---- मुनि:- यदि पूज्यजी मूर्त्ति मानते हैं तो फिर मंदिर में जाकर दर्शन क्यों नहीं करते हैं, और श्राप जैसों के लिये मंदिर जाने की मनाई कर अंतरायकर्म क्यों बांधते हैं ? सूरज ० - मंदिर मागियों ने धूमधाम बढ़ा दी । मुनि० -- इसमें आपको क्या हानि है ? सूरज - हमारे पूज्यजी म० कहते हैं कि शास्त्रों में लिखा है कि गुलाब का झाड़ के नीचे शुद्ध कपड़ा बिछादें और रात्री में जो फूल स्वतः ही टूट कर उस कपड़े पर गिर जावे वह फूल भगवान की मूर्ति पर चढ़ाना चाहिये। आज हम बंबई में देखते हैं तो गाड़ों बंद फूल मंदिर में चढ़ाये जाते हैं, यही कारण है कि पूज्य
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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