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________________ भाद-ज्ञान-द्वितीय खण्ड का उल्लेख है, फिर पूजा वगैरह का विधिविधान तो तुम अपनी अकल से समझ लेना । कारण जब विवाह होता है तो विवाह के विधान भी हुआ ही करते हैं, इसी प्रकार यदि मंदिर मूर्ति है तो उसकी पूजा विधि भी अवश्य ही होती है। ३५ घर वालों को हमेशा व्याख्यान सुनने से या पूजा में जाने गाने से अच्छा रंग लग गया था, इधर फलौदी वालों के विशेष आने जाने का प्रभाव भी था अतः लोगों की श्रद्धा मूर्तिपूजा को ओर मुक रही थी। खीचद वालों ने सुना कि आज पूज्यशी पधारेंगे तो सब लोग सामने गये । किसी के पास 'चर्चा का पब्लिक नोटिस' की पुस्तक भी थी, रास्ते में ही पूज्यजी को दिखाई, पूज्यजी पहिले से ही जानते थे कि वातावरण गर्मागर्म है । जिस समय पूज्यजी खीचंद में पधार रहे थे, उस समय मुनिश्री तो व्याख्यान बांच रहे थे, किंतु रूपसुंदरजी मकान की छत पर जाकर देख रहे थे। क्या कारण हुआ कि एक छोटासा कॅकर पूज्यजी के पास में आ पड़ा, पूज्यजी ने नजर दौड़ाई तो देखा कि मकान के ऊपर रूपसुंदरजी खड़े थे, आपने सोचा कि कॅकर शायद रूपसुंदर ने ही फेंका होगा । पूज्यजी महाराज बड़े ही समयज्ञ थे, आपने मकान में ठहर कर सर्वप्रथम देशना दी। उसमें मूर्ति के विषय की चर्चा की और कहा कि कई लोग कहते हैं कि ढूंढ़िया मूर्ति नहीं मानते हैं, किंतु यह बात गलत है,हम मूर्ति को जिस प्रकार सूत्रों में लिखी है उसी भांति बराबर मानते हैं। बस, मुनिश्री ने जिन ३५ घर वालों को जैनी बनाया था, वे लोग पूज्यजी का पहिला ही व्याख्यान सुन कर समझ गये कि मूर्ति तो जैन सूत्रों में है और पूज्यजी महाराज ने स्वयं फरमाया भी है कि हम मूर्ति मानते हैं फिर विधि विधान
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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