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मुनिश्रो और सूरजमलजी
मुनि- तो आज से नियम कर लो कि मैं मंदिर जाकर मूर्ति का दर्शन करके ही अन्न-जल ग्रहण करूँगा। ___ सूरज- हाँ नियम तो कर लेता हूँ किंतु मंदिर जाने में मंदिरमार्गी हमारो हंसी करते हैं। ___ मुनि- यदि मुंह पर मुंहपत्ती बांधने की कोई हंसी करें तो आप उसे भी त्याग देवेंगे।
सूरजः- नहीं। मुनिश्रीः- तो फिर मंदिर क्यों छोड़ा, इसी कारण तो आपने मंदिरों से अपना हक़ भी खो दिया है
सूरज०-हाँ महाराज ! आपका कहना तो सत्य है । मुनि०-सत्य है तो नियम ले लो।
सूरज०-बम्बई में तो मैं मन्दिर का दर्शन करता था, पर यहां नहीं होता है, यदि नियम लूँ और कभी भूल जाऊँ तो ?
मुनि-जिस दिन भूल जाओ उस दिन एक विगई या नमक का त्याग कर देना।
सूरज-आप तो खूब पकड़ में लेते हो। मुनि-धर्म का कार्य तो इसीप्रकार कठिनता से ही होता है । सुरज-लो, एक मास का नियम तो दिलवा दो।
मुनि-बड़ी शर्म की बात है, जो मुख्याः जन्म भर का कर्तव्य है उसके लिये आप एक मास का नियम लेते हैं ? क्या इसमें आपको जोर पड़ता है ?
सूरज-अच्छा, एक वर्ष का नियम दे दीजिये।
मुनि-अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, और आत्मा की साक्षी से एक वर्ष तक मन्दिर गये बिना अन्नजल