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जैसलमेर की यात्रार्थ जी के सामने यहां रहेगा-तो जबर्दस्त शास्त्रार्थ करना पड़ेगा, इत्यादि । 'भोले सैण भी कभी दुश्मन का काम दे दिया करते हैं। कदाचित् उन्होंने इसी कहावत को चरितार्थ किया हो।
श्रावक लोगों ने श्रा कर मुनिश्री से अर्ज की कि इस समय चतु. मास उतरने में आया है परंतु आपका यहाँ से विहार न होगा। कारण ढूंढ़ियों के पूज्यनी आते हैं, और उनके भक्तलोग कहते हैं कि गयवरचंदजी भाग जायगा, अतः पूज्यजी श्रावें तब तक श्रापको अवश्य ठहरना होगा, हाँ आपकी इच्छा हो तो खीचॅद तक पधार सकते हो । सशक्ति बरदाश्त होना मुश्किल है, मुनिश्री ने कहा कि खैर, मैं ठहर जाऊँगा पर पूंज्यजी कब तक श्रावेंगे यह तो उनसे मालूम कर लो? श्रावकों ने ढूंढ़ियों से पूछा तो उन्होंने कहा कि एक मास के अंदर हमारे पूज्यजी यहाँ पधार जायेंगे, यह बात मुनिश्री को सुना दी गई। उत्तर में मुनिश्री ने उन दोनों समुदाय वालों को संतोष हो जाय इस प्रकार का जवाब दे दिया । अस्तु ! ६२-जैसलमेर की यात्रार्थ विहार।
मुनिश्री ने विचार किया कि इतने दिन यहाँ ठहर कर क्या करेंगे, इससे तो अच्छा है कि जैसलमेर की यात्रा और प्राचीन ज्ञानभंडार का दर्शन कर आवें । इस बात को प्रकट की तो श्रीमान् अखेचंदजी वेद ने कहा कि मैं भी आपकी सेवा में चलू, ताकि मुझे भी यात्रा का लाभ मिल जायगा; बस यह बात प्रायः तय हो गई कि मुनिश्री को जैसलमेर यात्रा के लिए जाना है। ____जब चतुर्मास समाप्त हुआ तो मुनिश्री ने सराय के मकान से विहार कर कँवलागच्छ के उपाश्रय में आकर चतुर्मास बदल दिया।