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आदर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड
४०० गुरुआज्ञा शिरोधार्य कर जोगराजजी वैद्य को बीच में डाल कर उन के कहने के अनुसार आपस में समझौता कर लिया जिसकीस्वशी में दोनों की ओर से ५००० प्रतिएं 'देव गुरु वन्दन माला' छपवा कर स्वधर्म भाईयों को भेंट दी गई। कुल ३६००० पुस्तकें छपी थीं। ___ इसके अतिरिक्त कँवलागच्छ के उपाश्रय का प्राचीन एवं विशाल ज्ञानभंडार का अवलोकन किया, उसमें आपको कई प्राचीन ग्रन्थ पट्टावलिये एवं ऐतिहासिक पँथ, देखने का सौभाग्य मिला और कई प्राचीन ग्रन्थ एवं पट्टावलियों की आपने नकलें भी करवा ली थी। तथा चौरासी गच्छ की धर्मशाला एवं तपागच्छ के उपाश्रय का भंडार भी आपने देखा, इस प्रकार इस चतुर्मास में श्रापको ज्ञान-ध्यान का बहुत लाभ हुआ और जनता का भी आपने कामी उपकार किया।
ज्ञानपंचमी के दिन फौदी के मूर्तिपूजक जैन लोग ज्ञान की इतनी भक्ति करते हैं कि जिसको हजारों जैनेत्तर लोग भी दर्शन कर अनुमोदन किया करते हैं। मुनिश्री को इस प्रकार ज्ञान की भक्ति देखने का यह पहिला ही मौका था, बड़ा ही आनंद रहा और ज्ञान का अनुमोदन भी किया।
इधर चतुर्मास उतरने की तैयारी थी, मुनिश्री के विहार के लिए कई ग्रामों के श्रावक एवं प्रार्थनापत्र आ रहे थे, उत्तर में यही कहा जाता था कि, 'क्षेत्र-स्पर्शना' ।
फलौदी के स्थानकवासी भाई अपने पूज्य श्रीलालजी महाराज की विनती करने के लिए बीकानेर गये और पूज्यजी महाराज की स्वीकृति लेकर वापिस फलौदी में आ कर हा हुमचा दिया कि अब हमारे पूज्यजी आते हैं, गयवरचंदजी भाग जावेगा, क्योंकि पूज्य