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________________ ३९५ फलौदी के चतुर्मास में ज्ञान० ... जोग०-जी हाँ। ... दूसरे दिन वे सब रवाना हो अपने ग्राम को चले गये और वहाँ जा कर सबको पूर्ण हाल सुना दिया, और ढूंढिया साधुसाध्वियों के कथन को अपने ग़लत सिद्ध कर दिया। ___बाद में आपके संसारपक्ष के मामाजी चाँदमलजी वगैरह फलौदी आये । उनमें जो लोग पहिले क्रोधित होकर निंदा करते थे, किंतु जब आपका व्याख्यान और परिषदा का ठाठ देखा तो वे भी चकित हो गये, और उनको यह भी मालूम हो गया कि संवेगी धम भी एक प्राचीन धर्म है । मुनिश्री के साथ वार्तालाप होने पर वे मुख्यतः संवेगी नहीं बनें किंतु मन्दिर जाने का नियम अवश्य ले लिया। भाद्रपद शुक्लपक्ष में आपके संसारपक्ष के सुसराल वाले सब लोग आये; श्राप श्री से प्रश्नोत्तर होने पर वे लोग भी संवेगी श्रद्धा कोधारण कर मंदिर के पूर्ण भक्त बन गये। मुनिश्री ने इस प्रकार जो अकथनीय उपकार किया उसको हम कभी भी भूल नहीं सकते हैं। ६१-फलौदी के चतुर्मास में ज्ञान-प्रचार . यों तो आप प्रातःकाल के व्याख्यान में श्रीसुखविपाक सूत्र के बाद श्रीभगवतीजीसूत्र बांचते ही थे,किंतु रेखचंदजी गोलेच्छा रेख चंदजी लीछमीलालजी कौचर मूलचंदजी निमाणी मेघराजजी मुनौयत अगरचंदजी लोढ़ा तथा साध्वियों एवं श्रावकों के अत्यन्त आग्रह से अन्यान्य सूत्रों की वाचना भी दिया करते थे जिसमें श्री आचारॉग दशवैकलिक प्रश्नव्याकरण,व्यवहारसूत्र, वृहत्कल्पसूत्र,निशीथसूत्र,
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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