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भादर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड
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दशश्रुतस्कन्धसूत्रादि साधु आचार के सूत्र भी थे जिन्होंका दर्शन भी होना मुश्किल था, पर विना इन सूत्रों को पढ़े साधु धर्म पालन भी नहीं हो सकता है कारण शास्त्रकारों ने तो स्पष्ट फरमाया है कि जहाँ तक साधु साध्वी श्रीआचारांग सूत्र और निशीथसूत्र के ठीक जानकार नहीं हैं वे साधु साध्वी श्रागेवान हो कर विहार न करें, न व्याख्यान बांच सके और न गंचरी ही जा सकता है। तद्यपि आज का हाल देखा जाय तो कई नामधारी आचार्य व साधुओं ने भी शायद ही इन छेद सूत्रों के दर्शन किये हों। उन्हीं सूत्रों की वाचना मुनिश्री ने आम परिषदा और ४० साध्वियों को दी; उस समय साध्वियों मुनिश्री का इतना उपकार मानती थीं कि जिसका हम यहाँ वर्णन भी नहीं कर सकते हैं; तथापि मुनिश्री तो यही कहते थे कि हमने तो हमारा कर्तव्य बजाया है। इनके अतिरिक्त दोपहर में श्री पन्नावणाजीसूत्र, जीवाभिगमजीसूत्र, राजप्रश्नीसूत्र, उववाइसूत्र आदि की वाचना की। नेमीचंदजी और रेखचंदजी गोलेच्छा यही कहते थे कि सूत्र सुनाने वाले न तो कोई ऐसा साधु अभी तक पाया और न भविष्य में आने की आशा ही है ।
मुनिश्री असीम परिश्रम करके फलौदी के ज्ञान पिपासुओं को कण्ठस्थ ज्ञान भी इतना करवाया कि जिसका हम इस लोहा की लेखनी से वर्णन ही नहीं कर सकते हैं । रेखचंदजी, लीछमीलालजी कौचर,समरथमल जी गुलाबचंदजी गुलेच्छा, रावतमल जोरावरमल, नेमीचंद, आसकरण वेद और कई २०-२५ साध्वियों ने अनेक प्रकार के तात्विक ज्ञान को कण्ठस्थ कर लिया था और कई एकों ने व्याख्यान देने की तर्ज एवं मसाला को हासिल कर भाषण लेक्चर देने भी सीख गये थे फूलचंदजी झाबक तो रात्रि में