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भादर्श ज्ञान द्वितीय खण्ड
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ना, इतना तो अवश्य करना, शेष फिर कभी समय मिलेगा जब करना।
राज-लो भाई गणेशमलजी ! आप कहें वैसा कर लो।
मुनिश्री ने सराय के कमरे (हाल ) में नांद मंडवाई और प्रभु प्रतिमा मँगवा कर सब विधिविधान करवा कर गुरु आम्नाय का वासक्षेप दिया और कई व्रत पच्चरकान करवाये और उन सब को शुद्ध जैन बनाये। ____ गणेश-दूसरे दिन ठहर कर व्याख्यान में प्रभावना और दोपहर को श्रीगोडीजी महाराज के मंदिर में निनाणवें प्रकार की पूजा भणाई।
जोगराजजी ने मुनिश्री से अर्ज की कि गणेशमलजी अच्छे समझदार हैं, सबके साथ वात्सल्यता भाव रखते हैं, हम बम्बई में शामिल ही रहते हैं। आपसे हम अच्छी तरह से परिचित हैं, आप जैसे सत्यप्रिय हैं वैसे ही आप परिश्रमी तथा शाँत प्रकृति के पुरुष हैं। आपने जब दीक्षा ली थी तब इनके सब भाई छोटे थे, उन सबको आपने ही होशियार किया, अपना खुद का विवाह तथा दोनों भाइयों का विवाह आपके ही हाथों से हुआ, अपने माता पिता का मोसर भी आपने ही किया। अपनी भावज का मान तो आप माताजी से भी विशेष रखते हैं, और हमारे साथ तो आपका चिरकाल से प्रेम है।
मुनिश्री- हाँ, जोगराजजी हम पाँच भाइयों में गणेशमलजी पड़े ही शांत प्रकृति वाले हैं, और समझदार होने से ही थोड़ी-सी बात में समझ कर सत्य का ग्रहण कर लिया है। क्या यह कम समझदारी है ?