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________________ ३९३ बीसलपुर वालों को सद्बोध बहुत लंबा चौड़ा था । क्या हम लोगों से इस प्रकार हमेशा क्रिया हो सकती है ? हाँ, आप कहोगे तो मन्दिर तो हम लोग हमेशा जाया करेंगे। ___मुनि०-आत्मकल्याण करना कोई हँसी-ठट्ठे की बात नहीं है, सब कार्य विधिपूर्वक करने से ही फल होता है। अतएव आप लोगों को इसका अभ्यास कर विधिविधान सीखना चाहिये । राजा-पर कोई सिखानेवाला भी तो होना चाहिये ? मुनि०-यहाँ ठहर जाओ साध्वियों बहुत हैं, एक मास में सब क्रिया एवं विधिविधान सीख जाओगे। राज०-आप तो घर छोड़ कर निकल गये, पर हम लोग तो घर में बैठे हैं, एक मास घर छोड़ कर यहाँ कैसे रहा जा सकता है। मुनि०-पर यह घर मग्ने पर साथ न चलेंगे, इतनी ममत्व क्यों रखते हो?वह दिन कहाँ गये जो दीक्षा लेने को तैयार हुए थे। ___ राज०-दीक्षा लेने के बाद तो यही काम रह जाता है, पर अभी तो हम गृहस्थ हैं, आप अपने छोटे भाइयों को छोड़ आये हैं, उनकी सार संभाल भी तो हमव्हो ही करनी पड़ती है । गणेश. मलजी दिसावार जाने वाले हैं, इस हालत में मैं यहाँ कैसे ठहर सकती हूँ। ____ मुनि०-खैर, एक तो आप सब गुरु आम्नाय का वासक्षेपले लें, दूसरे मंदिर मूर्ति का हमेशा दर्शन करना, समय पा कर शत्रुजय वगैरहः तीर्थों की यात्रा करना। सामायिक करने के समय उच्चासन पर एक पुस्तक की स्थापना कर तीन नवकार गिन ले
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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