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________________ भाद-ज्ञान द्वितीय खण्ड ३८० नहीं पाया जाता है, अतः हूँढिया धर्म छोड़ दिया; इत्यादि हमेशा एक-न-एक झगड़ा तो कर हो आते, फिर आकर गुरू महाराज को कहते कि हँढिया लोग अपनी निंदा करते हैं और आप उन्हें कुछ कहते भी नहीं हो। गुरु महाराज कहते थे कि ढूंढियों के साथ अपने द्वेष भाव या लड़ाई नहीं है किंतु अपनी मान्यता के मतभेद का झगड़ा है, वह लड़ने से हल नहीं होगा किंतु प्रमाणों से हल होगा। इसलिये मैं लेख तो लिख सकता हूँ पर. झगड़ा करना नहीं चाहता हूँ, और मैं तुमको भी कहता हूँ कि इस प्रकार झगड़ा कर कर्मबन्ध मत करो, परंतु तुम्हारी तो एक आदत सी पड़ गई है। ५८,ढ़ियों की माफी और पूज्यजी का तार - एक समय का जिक्र है कि मुनि रूपसुन्दरजी गौचरी गये थे; वहाँ ढ ढियों ने उनको कई-एक ऐसे अप-शब्द कहे कि जिससे वे स्थान पर आकर गुरु महाराज के सामने रोने लगे। इस पर गुरु महागज ने तहकीकात करवाई ता ज्ञात हुआ कि इसमें रूपसुंदरजी का नहीं अपितु ढं ढियों का ही जुल्म एवं अन्याय है। फिर तो था ही क्या ? मुनिश्री ने व्याख्यान में इस दंग का उपदेश दिया कि सुनने वालो के अंदर अपने धर्म का इतना गौरव प्रकट हुआ कि वे लोग जो वहाँ उपस्थित थे सबको कह दिया कि आप भोजन कर एक बजे सराय जल्दी पधारना तथा सेवग को कह कर सकल श्रोसंघ में कहला दिया कि आज एक बजे श्रीसंघ सराय में एकत्र होगा, यथा समय सब जल्दी पधारें। " ठीक समय पर श्री संघ एकत्र हो गया, सब के दिल में
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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