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________________ ३८१ दूढियों का अन्याय की सजा हूँढियों के न्याय के लिए रोष था, और उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि ऐसे देव, गुरु, धर्म के निंदकों के साथ रोटी बेटो का व्यवहार क्यों रखा जाता है गोड़वाड़ वालों की भांति लिखत कर इनके साथ सब व्यवहार तोड़ दिया जावे, इत्यादि जोश भरी बातें हो रही थी। - इधर ढूढिया समाज को इस बात का पता मिला कि आज मूर्तिपूजक समाज ने सराय में एकत्रित हो कर अपने से व्यवहार बंद करने का निश्चय कर लिया है तो उनके होश हवास उड़ गये और वे भी अपने स्थानक में एकत्र हो कहने लगे कि ऐसी निन्दास्मक चर्चा किसने की है कि मूर्तिपूजकों को एकत्र हो इस प्रकार के मार्ग का अवलंबन करना पड़ता है। ___उन लोगों में से सूरजमलजी, अगरचंदजी वैद्य, वस्तावर चंदजी डढा, अलसीदासजी चोरड़िया वगैरह अगुवा लोग चल कर सराय में आए और पहिले मुनिश्री के पास जाकर वन्दन किया और नम्रता पूर्वक प्रार्थना करने लगे कि आप विद्वानों के विराजते हुए भी यह फूट व क्लेश के बीज क्यों बोये जा रहे हैं ? अगर हमारी ओर से किसी प्रकार का कसूर हुआ हो तो हम आप से बार बार माफी मांगते हैं। मुनिश्री:-श्रावकों मैंने आपकी ओर के दुर्ववचनों को बहुत दिनों से सहन कर रहा हूँ; किंतु आप हमारे देव, गुरु, तथा धर्म की निंदा करते हो यह कितना जुल्म और अन्याय है भला इसको कहां तक सहन किया जावे । दू-महाराज हम लोग इस बात को जानते तक भी नहीं है कि किस नालायक - बेवकूफ ने ऐसा अघटित कार्य किया है,
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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