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________________ ३७९ श्रीभगवती सूत्र की वाचना आदि से सूत्रपूजा हुई थी। बाद वाचना शुरू हुई श्रोताओं को व्याख्यान का आनन्द इस प्रकार श्राता था कि जिसका वर्णन हम इस लेखनी द्वारा नहीं कर सकते हैं, और जनता मुनीश्री की बराबर प्रसंशा कर उपकार मानता हुई कहती थीकि पूज्य गुरु महाराज हम ने तो हमारी जिंदगी में इस प्रकार श्रीभगवती सूत्र पहिले पहल ही सुना है। हे उपकारी ! आपके सिवाय हम हत् भाग्यों को इस प्रकार सूत्र कौन सुना सकता है हम लोग आपके उपकार का बदला किस प्रकार से अदा करेंगे ? ___ जब श्री भवगतीसूत्र में स्थान २ पर पन्नवण सूत्र की भोलावण श्रान लगी तो श्रावकों की इच्छा हुई कि यदि दोपहर को मुनिश्रोजो पनमवणसत्र वांचा करें तो कैसा आनंद आवे । प्रार्थना करने पर मुनिश्री ने दोपहर को श्री पन्नवणसूत्र बांचना शुरू कर दिया, क्योंकि श्राप ढू दियापना में दोनों समय व्याख्यान बांचे हुए थे और आपको सूत्र बांचने का शुरू से अच्छा प्रेम भी था। यद्यपि दोपहर को आने में लोगों को तकलीफ उठानी पड़ती थी, कारण जीन की रेती खूब तप जाती थी, पैरों में फाला तक हो जाते थे; किन्तु सूत्र ने जनता पर इतना प्रभाव डाला कि वे उस कष्ट को कुछ भी नहीं समझ कर सूत्र का आनन्द लूटने में ही जोवन की सार्थकता समझती थीं। ___ रूपसुन्दरजा यों तो अच्छे गधु थे। फिर भी आपको प्रकृति बहुत तेज थी । जब वे गोचरी पानी को जाते और उनको कोई स्थानकवासी कह देता कि महाराज आपने दूँढिया धर्म क्यों छोड़ा तो वे उनसे लड़ने लग जाते थे, और कभी २ तो कह देते थे कि मैं मूत्र-पेशाब पी-पी कर थक गया, अब मेरे से पेशाब
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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