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________________ भादर्श-ज्ञानद्वितीय खण्ड ३७८ कई मूल्य से मँगवाई गई, कई समाचार पत्र ( अस्त्रबार ) मँगवाये गये । एक नौकर भी रख लिया ताकि लाईब्रेरी हर समय खुली रहे। एक तो फलोदी के लोग दिसावरी होने से उनको काफी समय मिलता था, दूसरे भवन रास्ते पर होने से जाने को सुविधा, तीसरे मुनीश्री का हर समय उपदेश । अतः पाठशाला और लाईब्रेरी का कार्य खूब जोर-शोर के साथ चलता रहा। .. ____ मुनीश्री बहुत समय तक तो बड़ी धर्मशाला में ठहरे, बाद कॅवलेगच्छ के श्रावकों के आग्रह से कॅवलेगच्छ के उपाश्रय में विराजे, तदान्तर तपागच्छ वालों की प्रार्थना से तपागच्छ के चो भुर्जा नाम के उपाश्रय में रहे, किन्तु व्याख्यान हमेशा बड़ो धर्मशाला में ही होता था, कारण दूसरे उपाश्रय में इतना स्थान नहीं था कि मुनीश्री के व्याख्यान की परिषदा बैठ सके । ५७धर्मशाला से सराय में पधारना जब जेष्ठ मास में गर्मी का प्रचण्ड तप पड़ने लगा तब सबकी इच्छा हुई कि बन्द मकान की अपेक्षा व्याख्यान सेठ मोतीलानजी कोचर की सराय में हो तो जनता को श्राराम रहेगा, क्योंकि वहाँ खुले मन में हवा चारों ओर से आया करती है । बस, सबकी सम्मति से तथा सेठ मोतीलालजी की आग्रहपूर्वक विनती से मुनीश्री सराय में पधार गये, तथा व्याख्यान में महाप्रभाविक श्री भगवतीजी सूत्र बांचने का निर्णय हुआ तो वेदों की वासवालों ने श्रीसूत्रजों को अपनी वास में ले जाकर बड़े ही समारोह से रात्रि जागरण वरघोड़ा,और पूजा प्रभावना के साथ लाकर गुरु महाराज के कर कमलों में अर्पण किया तत्पश्चात् मुक्ताफल और सोने की मोहरों
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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