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पाठशाला कामकान
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मुनि- श्री गौड़ीजी के मन्दिर के सामने पाठशाला।
संधवी-यह मकान तो अपना ही है. फिर पाठशाला क्यों नहीं खोली जाती है . मुनि- मकान तो अपना ही है पर म्यूनीसिपलिटी दबा कर बैठी है ना ?
संधवी-मैं प्राज ही खाली करवा दूगा, आप गौचरी लीरावें । . मुनिश्री गौचरी लेकर पधार गये। दूसरे ही दिन संघवी
जी ने पाठशाला का मकान खाली करवा दिया बस फिर तो विलम्ब ही क्या था वैशाख शुक्ला १० के दिन मुनिश्री की अध्यक्षता में श्रीसंघ एकत्र हुआ तथा स्वनामधन्य सेठ माणक लालजी की और से पाठशाला का मुहुर्त कर दियागया तथा लोगों ने अपने लड़कों को पढ़ाने के लिए भेजना शुरु कर दिया, फिल हाल एक अध्यापक रख लिया बाद में जब विद्यार्थियों की संख्या बढ़ने लगी तो बीकानेर से यति प्रेमसुंदरजी को बुलाकर धार्मिक अध्यापक के स्थान पर रख लिया। :, पाठशाला का मकान कंवला गच्छ की ओर से बनवाया गया
था, पर उस में रकम देवद्रव्य की लगी थी, इस लिए जो किराया म्युनीसिपाल वाले देते थे, वही किराया ३) रूपये माहवारी माण कलालजी ने देना स्वीकार कर लिया है। ...... जब पाठशाला का मकान स्वाधीन हो गया तथा पाठशाला स्थापित हो गई, तो नवयुवक मंडल में इस पाठशाला की तीसरी मॅजिल पर अपनी लाईब्रेरी खोलने का निश्चय कर लिया । मुनीश्री की अगवानी में श्रीसंघ को एकत्रित कर नवयुवकों ने बड़े उत्साह के साथ लाईब्रेरी स्थापित कर दी, कई पुस्तकें भेंट द्वाग आई व