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________________ भादशान द्वितीय खण्ड म्युनिसिपल को किराये पर दे दी है। अतः वे छोड़े तब काम बन सकता है । जोगराजजी वैद्य ने कहा, मैंने अभी म्युनिसिपल बालों को पूछा है, वे कहते हैं कि जब तक हमको दूसरा मकान न मिले, हम पाठशाला खाली नहीं कर सकते हैं । खैर, इसका फिर विचार किया जायगा। - उस समयं फलौदी हुकूमत में श्रीमान् किस्तूरचंदजी सँघी जोधपुर वाले हाकिम थे, वे स्थानकवासी थे किंतु मुनिश्री के व्याख्यान का ऐसा रंग लग गया था कि बिना चूक हमेशा व्याख्यान सुनने को आया करते थे और श्रीगौड़ी पार्श्वनाथजी के मन्दिर का तो आपको इतना इष्ट हो गया था कि दर्शन किए बिना भोजन तक भी नहीं करते थे। संघजी मुनीश्री को हमेशा अर्ज किया करते थे कि कभी तो गोचरी की कृपा उधर भी किया करें। · मुनिश्री समयज्ञ थे; एकदिन संघीजी के वहां गोचरी के लिए पधारे, संघीजी बड़े ही खुश हुए और आहारादि विहारने लगे, उस समय मुनिश्री ने कहा कि सँघीजी साब आप जैसे श्रद्धासम्पन्न हाकिम के होते हुए भी हमारा महान कार्य रूका हुआ है। संघवीजी-आपका ऐसा कौनसा कार्य है जो कि रुका पड़ा है? मुनि- हमारा आवश्यक कार्य है। संधवी- फरमावें, मेरे से बनेगा तो मैं तुरन्त करूंगा। मुनि-मैंने श्रावकों को उपदेश देकर यहां जैन पाठशाला स्थापित करवाने का निश्चय करवाया है किंतु मकान के अभाव से वह कार्य हो नहीं सका यदि समय व्यतीत हो जाने पर श्रावकों का इरादा हट गया हो तो हमारा उपदेश मिट्टी में मिल जायगा। संघवी- आपने किस मकान को पसंद किया है ?
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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