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________________ ३५५ जैन पाठशाला-लायमेरी साहब पाठशाला का लाभ लेते हैं तो हम नवयुवकलाईब्रेरी का कार्य अपनी जिम्मेवारी पर उठा लेते हैं । बस, फिर तो देर ही क्या थी; श्रीसंघ ने मुनिश्री से कहा कि आपके फरमाये हुए दोनों काम श्रीसंघ ने स्वीकार कर लिया है, अब पापको चतुमास के लिये मंजूरी दे देना चाहिये। ' मुनि०-मैंने मंजूरी पहिले ही दे दी है, किन्तु ये दोनों कार्य कार्य रूप में परिणित कर देने पर मेरी ओर से चतुर्मास की स्वीकृति है। .श्रीसंघ-हष और उत्साह के मारे चतुर्मास की जय बोल कर मकान को गुञ्जित कर दिया और बाद प्रभावना के साथ व्याख्यान समाप्त हुआ। ____मध्यान्ह काल में मोतीलालजी, माणकलालजी, रेखचंदजी कोचर, शिवदानमलजी कानुंगा रेखचंदजी लोकड़, सुल्तानचंदजी जोगराजजी भतुजी वैद्य, मेघराजजी मुनोयत, फूलचंदजी माबक, रेखचंदजी, फूलचंदजी, पाबूदानजी मूलचंदजी, शोभागमलजी गोलेछा इत्यादि बहुत से श्रावक लोग मुनिश्री के पास आये और पाठशाला के लिए किस प्रकार का कार्य करना इत्यादि सलाह ले रहे थे, किंतु सबसे पहिला सवाल मकान का उठ खड़ा हुआ कि किस मकान में पाठशाला खोली जाय, शोभागमलजी गोलेछा ने कहा श्रीगौड़ीजी महाराज के मँदिर के सामने पाठशाला है, उस मकान में पाठशाला स्थापित करने में बहुत अच्छा सुभाता रहेगा, कारण एक तो यह मकान शहर के मध्य में, दूसरा मंदिर के पास में, तीसरा चारों रास्ते यहाँ मिलते हैं, जिससे कि पाठशाला की देख-रेख में सुभीता रहेगा । यह बात सबके जंच गई पर पाठशाला
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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