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चर्चा चली मूर्त्तिपूजा की, उसने जोर पकड़ा भारी । वहाँ से चलकर आये गंगापुर, करनी थी एक नई तैयारी ॥ कर्मचन्दजी वहाँ थे पहले से, मोडीरामजी फिर आये थे । शोभालाल को भेजा पूज्य ने, सर्व योग मन चाहे थे ||३५|| साथ गुरु के आये ब्यावर, वहाँ से जोधाणे आये थे । व्याख्यान बीच में प्रश्न पूछा, मूर्ति के भेद बताये थे | तार द्वारा सब हाल पूज्य को देकर खबर मंगाई थी । लिखत देकर भेजा शोभा को, कार्यवाई सब अन्याई थी ॥ ३६ ॥ उत्सूत्र का वा पाप अरु, मिथ्या जाल का त्याग किया । वीर जन्म के शुभ दिन ने, अलग होने का समय दिया || शिष्य स्नेह के कारण गुरु के, नेत्रों से जल बह रहा । फिर भी मूर्तिपूजा सूत्रों में, स्वीकार वे कर रहा ||३७|| समझ गये पर साहस नहीं था, कुछ कर्मों का उदय रहा । छोड़ नहीं सके इस कारण, फिर भी मध्यस्थ भाव रहा ॥ गुरुवर पधारे नगर फलौदी, आप महामन्दिर आये थे । दीपचन्द व मिलापचन्द मिल, जाकर वहाँ अपनाये थे ||३८|| वहां से आप पधारे तींवरी, लुणकरण लोढ़ा था वहाँ । जिन शासन का था वह रागी, तन धन अर्पण करता जहाँ ॥ चतुर्मास की मानी विनती, तीर्थ ओसियाँ आये थे !
बीर
प्रभु की शुभ यात्रा कर, गुरु, रत्न के दर्शन पाये थे ॥ ३९ ॥ समागम से जो आया आनन्द, जिसका मैं क्या करूँ बयान | सुन कर के अभ्यास आपका, दश सूत्रों का कण्ठस्थ ज्ञान ॥ सार्द्धत्रियत पढ़े थोकड़ें, तीस सूत्रों की वाँचना करी । देख गुरुवर ने आश्चर्य पाया, युक्तिवाद था तर्क भरी ||४०||